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अस्मिन् भवे सास्तप्त्वा यास्यसि परमं पदे ॥ ५८६॥ अथासौ श्रेणिको धमान् वर्धमान जिनं शिवं । नत्वाबोचत्तदा नूनं पुडुमली कृत्य हस्तयोः ॥ ५६० हे नाथ जगतां त्राताणाम्भोधे जगत्प्रभो! । सुरासुरनराशसंस्तुन ! शिवपद! ६ ॥ ज्ञानरूल! तमोहारिन मोहरे !, काम ! जिन ! हिच्छाग्यहं देव ! सादगदध्यवांछित ।। ५६२ ॥ श्रीमद्विमलनाथस्य पुराणं हृदयंगम । श्रेतुमच्छाम्य नाथ! च्याना एयनाशनं ।। ५३॥ तरसमये वला जातो धर्माख्यो धर्मतत्परः । स्वयंभूश्चापि संजातः शवोत्यंत विक्रमः ॥ ५४॥ प्रतिचक्री महान् जसं नाना मधुरिति स्मृतः । पतंग किंधलं श६ कथयात्र कृपामय || ५६५॥ संजयंत ध्यानं विश्नो ज्ञानस्य कारण । तद्गपो यामिनी जातो तेषां वृत्तं चद प्रभो ॥ ५६६।। मुनीना दानिन नाथ ! ध्यानिनां च भवाशां । प्रिय कुमार ! वहांसे चयकर तुम राजा श्रेणिकके अभयकुमार नामके पुत्र हुए हो और तुम इस
भवसे तप तपकर नियमसे परम पद मोक्ष प्राप्त करोगे॥ ५८०-५६० ॥ जिससमय कुमार अभय 2 P: के पूर्वभवोंका वर्णन समाप्त हो चुका उससमय राजा श्रेणिकने साक्षात् कल्याण स्वरूप भगवान
वर्द्धमानको नमस्कार किया एवं दोनों हाथोंको जोड़कर इसप्रकार भक्तिपूर्वक कहने लगे :ही स्वामिन् ! आप तीनों जगतके रक्षण करता हो । गुणोंके समुद्र हो। तीनों जगत के जालोर
आपके चरण कमलोंकी बड़े २ सुर असुर और मनुष्यों के स्वामी स्तुति करते हैं । सेवकोंको मोन प्रदान करने वाले हो । ज्ञानस्वरूप हो । अज्ञान अंधकारको नाश करनेवाले हो । मोहरूपी राको
हरानेवाले और कामदेवको भस्म करने वाले हो। भगवान् ! जिस वातके विनयपूर्वक जाननेकी 9 भव्योंको इच्छा है मैं उसे ही पूछना चाहता हूँ।प्रभो ! भगवान विमलनाथका पुराण अत्यंत मना
हर है और भव्यजीवोंके पापोंका नाश करनेवाला है इसलिये मैं उसेही सुनना चाहता है। भगवान विमलनाथके समयमें धर्म नामका बलभद्र हुआ है। स्वयंभू नामका नारायण हुआ है और मधु नामका प्रतिनारायण हुआ है इनका कितना बल था कितनी शूरवीरता था, हे कृपानाथ ! आ कृपाकर कहें ॥ ५६१-५६६ ॥ मुनिराज संजयंतका तय ध्यान उनपर जो उपसर्ग पड़ा था वह
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