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The भूगती राहि ! कुह पूजादिकं सदा । दुःला मुस्त्योन्मी भूत्वा कुरु धर्म यथात्रि ॥ २६ ॥ श्रेणिकाइसंबा दिया राया
si ग्रहं तदा । प्रतियोधनहेतुत्वादामतो छिनीगृहे ॥ २८ ॥ प्रोवाच शृण मो बाले ! जैनाः कुगुरवो मताः । न नानाः पशयोऽपि स्यhd वयं ज्ञानाधिपारमः ॥ २९ ॥ तदा प्रमाण राक्षी तं तावको धर्म ईदृशः । चेसवेरोजयित्वाऽहं गृहोशामि न संशयः ॥१०॥
कुछ भी न कह कर यही कहा प्रियरानी ! तुम इच्छानुसार अपने देव जिनेंद्रकी पूजा आदि करो
दुःख छोड़ो एवं जिसरूपसे तुम्हें रुच एकाग्रचित्त हो अपने धर्मका आराधन को ।। २६७ ॥ त राजा श्रेणिकसे वौद्धगुरुओंने सुना कि महाराणी चलनीको जैनधर्मके अन्दर बड़ा आग्रह है इस लिये वे चेलनीके महलमें उसे समझाने के लिये आये और अपनी गुरुता प्रगट करते हुए यह कहने लगे-- ___अरे मूर्ख लड़की ! तू जो जैन गुरुओंकी प्रशंसा करती है यह तेरा अज्ञान है । जैनियोंके गुरु कुगुरु हैं। यदि उन्हें नग्न मानकर ही गुरु माना जाय तो नग्न तो पश भी हैं उन्हें भी गुरु मानना चाहिये । देख हमलोग ज्ञानरूपी समुद्र की पारपर पहचे हुए हैं--परम ज्ञानी हैं इसलिये हमको ही तुझे गुरु समझना चाहिये । बौद्ध गुरुओंके वचन सुन बुद्धिमती रानी चे लनीने विशेष विवाद करना उचित नहीं समझा बस यही उत्तर दिया कि यदि आपका धर्म इतना उत्तम है तो | मैं आप लोगोंको भोजन कराकर आपका धर्म ग्रहण करूंगी इस बातमें जरा भी संदेह नहीं ॥ २६६-३०० ॥ दूसरे दिन रानीने बौद्धसाधुओंको निमन्त्रण दे भोजनके लिये बुलाया। उन्हें 2 भोजनके लिये विठा दिया। एक एक ज ता उनका उठवा मंगाया। खूब पीसकर उसे निकृष्ट छाछ
में डाल मसाला मिला दियाभार थोड़ा थोड़ा कर सबोंको परोस दिया गया । वेभी कोई स्वादिष्ट तिचीज जान खा गये। जब बाहिर आकर अपने मठको जाने लगे तो ज ते खोजने लगे। गुरुओंके
ज तोंकी चोरीका राजमहलमें हुल्लड़ मच गया। रानी चलनीने भी वह हुल्लड़ सुना । उसने यही ]
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