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पचितों कर्तुं पिस्तावद्विलोकने । तिनः कन्याः समायाताः पप्रच्छ स्तं विदांबरं ॥ २८२ ॥ भो मकरध्वजाकाराचागतिर्भवतां कुतः । राजगुरात्समायातास्तत्र श्रेणिकभूमिपः ॥ २८३ ॥ कीदृशो भूपतिः सोऽस्ति तदा पट्ट प्रसार्य सः अदर्शयत्तदा दृष्ट्वा कन्यकाः कीलिता इव ॥ २८४ ॥ प्रो जेद्धा क्षो दि वरः कुतः । तदीयमिंगितं मत्वा सुरंगायां मिषं व्यधात् ॥ २८९ ॥ हारमौद्रिक पेठा बंगला बेलनां स्वपुरं ययौ ॥ २८६ ॥ सम्मुनं क्षणिको भूपो गत्वा सामंतसंयुतः । पूजा कर रहे थे । राज महलके समीप होनेसे बराबर शब्द रावांस्तक पहुंचता था । पूजाकी ध्वनि सुन ज्येष्ठा चन्दना और चलनी तीन कन्यायें चलीं आई और कुमार अभय से इसप्रकार पूछने लगीं
कामदेव के समान आकृति के धारक महानुभाव । आपका यहांपर आना किस देशले हुआ हैं ? उत्तर में कुमार ने कहा- हम लोग राजगृह नगरसे आये हुए हैं जहांपर कि महाराज श्रेणिक न्यायपूर्वक प्रजाका अच्छी तरह पालन करते हैं । कन्याओंने फिर पूछा- महाराज श्रेणिक कैसे राजा हैं? कुमार अभयने उनके सामने महाराज श्रेणिकका चित्रपट फैला दिया एवं स्पष्टरूपसे उनका स्वरूप दिखा दिया जिसे देख तीनों कन्यायें इसरूपसे निश्चल खड़ी रहगई मानों कील दी हैं एवं इसप्रकार खेद प्रगट करती बोलीं- हे परम जिनधर्मी महानुभाव ! हमें इसप्रकार के उत्तम वरकी प्राप्ति कहां हो सकती है । बुद्धिमान कुमार अभय उनके मनका भाव पहिचान गये एवं "मैं महाराज श्रेणिकसे मिल सकता हू" ऐसा वायदा कर पहिले ही से अपने मकानसे राज महलतक जो सुरंग खुदवा रक्खी थी उससे आनेका इशारा कर दिया। रूपकी लोलुपी वे कन्यायें सुरंगमें होकर अभय कुमारके मकान की ओर चलदों परंतु आते आते ज्येष्ठा और चन्दनाको कुछ संदेह होगया इसलिये ज्येष्ठा हार लेने के बहाने और चन्दना अपनी मुद्री लेने के बहानेसे पीछ े लोट गई । अकेली विचारी चलना रह गई । कुमार अभयने उसे अपनी ओर खींच लिया एवं उसे साथ लेकर राजगृह
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