Book Title: Upmiti Bhav Prakasha Katha Part 1 and 2
Author(s): Siddharshi Gani, Vinaysagar
Publisher: Rajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur
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प्रस्तावना
३६
पद्य में, और तीसरा गद्य-पद्यमयी भाषा-शैली में है । इसका रचना-काल भोज के समय (१०१८-१०६३) के बाद का ठहराया गया है। दक्षिण भारत में इसका अधिक प्रसिद्ध नाम 'विक्रमार्कचरित' है।
विक्रमादित्य से सम्बन्धित कथाओं के कुछ अन्य ग्रन्थ भी प्राप्त होते हैं। ये हैं अनन्त का 'वीरचरित', शिवदास की 'शालिवाहन कथा' और भट्ट विद्याधर के शिष्य आनन्द की 'माधवानल कथा'। एक अज्ञात लेखक का 'विक्रमोदया' तथा एक जैन संकलन-'पञ्चदण्डच्छत्र प्रबन्ध' ।
___'शुक सप्तति' में, कार्यवशात् घर छोड़ कर गये मदनसेन की प्रियतमा का मन बहलाने के लिये, उसका पालतू तोता, हर रात्रि में एक मनोरंजक कहानी उसे सुनाता है । ७० दिनों के बाद मदनसेन घर लौटता है । इस तरह, तोते द्वारा कही गई कहानियों के आधार पर, इसका नामकरण किया गया है। इसका रचना काल चौदहवीं शताब्दी के पूर्व का अनुमानित किया गया है। इसके भी तीन संस्करण प्राप्त होते हैं। मैथिली कवि विद्यापति की पन्द्रहवीं शताब्दी की रचना 'पुरुष परीक्षा' में नीति और राजनीति से सम्बन्धित कथाएं हैं। शिवदास के 'कथार्णव' की पैंतीस कथाएं चोरों और मूों की कथाएं हैं। अनेक कवियों की मनोरंजक दंतकथाएं 'भोज-प्रबन्ध' में संग्रहीत हैं। इसी परम्परा के संग्रह ग्रन्थों में 'पारण्य यामिनी' और 'ईसब्नीति कथा' को गिना जाता है ।
चारित्रसून्दर का 'महिपाल चरित'1 चौदह सर्गों का कथा ग्रन्थ है । इसका रोचक कथानक पन्द्रहवीं शताब्दी में रचा गया, ऐसा अनुमान किया जाता है। इसी तरह का मनोरंजक कथानक है-'उत्तम चरित कथानक' । आश्चर्यपूर्ण और साहसिक घटनाएं इसमें वरिणत हैं। प्रत्येक कथानक, जैन धर्म के किसी न किसी पवित्र आदर्श की ओर इंगित करता है। इसकी रचना गद्य-पद्यमय है। भाषा संस्कृतमय है। कुछ प्रान्तीय भाषाओं के शब्द प्रयोग, इसका रचना-स्थल गुजरात में होने का संकेत करते हैं। 'पापबुद्धि और धर्मबुद्धि' कथानक एक विनोदपूर्ण धार्मिक कृति है।
१ श्री हीरालाल हंसराज, जामनगर द्वारा १९०६ में सम्पादित । द्रष्टव्य-विन्टरनित्ज
ए हिस्ट्री आफ इन्डियन कल्चर-भाग-२, पृष्ठ-५३६-५३७. २. इसका गद्यभाग श्री ए. बेवर द्वारा जर्मनभाषा में अनूदित और सम्पादित है । 'उत्तम
कुमारचरित' नाम से चारुचन्द्र द्वारा किया गया इसका पद्यबद्ध रूपान्तर भी श्री हीरालाल हंसराज, जामनगर द्वारा सम्पादित हो चुका है । द्रष्टव्य-विन्टरनित्ज-ए हिस्ट्री
अॉफ इण्डियन कल्चर, भाग-२, पृष्ठ-५३८. ३. श्री ई. लवाटिनी द्वारा इटालियन भाषा में सम्पादन और अनुवाद किया जा चुका ।
द्रष्टव्य-वही-पृष्ठ-५३८
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