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त्रैवर्णिकाचारः ।
: चतुर्दशात्र वै सन्ति श्रोतारः शास्त्रहेतवः । उत्तमा मध्यमा नीचास्त्रिविधा लोकवर्तिनः ॥ २३ ॥
संसारमें शास्त्र सुननेवाले श्रोतागण चौदह प्रकारके होते हैं । इनमें कोई उत्तम, कोई मध्यम और कोई जघन्य ऐसे तीन तरहके होते हैं ॥ २३ ॥
गोहंसमृच्छकाजाहिमहिपाशालिनी शिला । कङ्कच्छिद्रघौ दंशमार्जारसजलौकसः ॥ २४ ॥
गाय, हंस, मृत्तिका, तोता, बकरी, सर्प, भैंस, चलनी, सिला, कंगी, सछिद्र घड़ा, डाँस, बिल्ली और जौंक ये ऊपर कहे गये चौदह प्रकारके श्रोताओंके चौदह नाम है ॥ २४ ॥ गोहंसमृच्छुकाः श्रेष्ठा मध्याश्वाजाशिलाघटाः ।
शेषा नीचाः परिप्रोक्ता धर्मशास्त्रविवर्जिताः ।। २५ ।।
'गाय, हंस, मिट्टी और तोले के जैसे ये चार उत्तम श्रोता हैं । बकरी, सिला और कलशके जैसे ये तीन मध्यम श्रोता हैं और बाकी बचे हुए सात जघन्य श्रोता हैं, जो कि धर्मशास्त्र के ज्ञानसे निरे शून्य होते हैं 1 भावार्थ - इन. चौदह वस्तुओंके स्वभावके जैसे चौदह तरहके श्रोतागण होते हैं। इनका खुलासा. इस प्रकार है---जैसे गायें जैसा मिला वैसा खाकर दूध देती हैं वैसे ही जो जैसा जैनवाक्य हो वैसा सुनकर अपना और दूसरेका भला करते हैं वे श्रोता गायके समान हैं । जो सारभूत वस्तुको ग्रहण करें वे हंसके समान हैं। जैसे मिट्टी पानीको अपना कर गीली हो जाती है वैसे ही जिनवाक्योंके सुननेसे जिनके परिणाम कोमल हो जाते हैं वे मिट्टी के जैसे हैं । जैसे तोते को एक बार समझा देनेसे वह उसकी अच्छी तरह धारणा रखता है वैसे ही जो श्रोता एक बार जिनवाक्योंको सुनकर उसकी दृढ़ धारणा करते हैं तोते के जैसे हैं। ये चार उत्तम श्रोता हैं । जो बकरेके समान अतिशय कामी हैं वे बकरेके जैसे हैं । जो श्रोता चुपचाप बैठे रहें शास्त्र -श्रवणमें कुछ विघ्न न डालें वे सिला समान हैं । जैसे फूटे घड़े में जल नहीं ठहरता वैसे ही जिनके हृदयमें जिनवाक्य तो ठहरते नहीं हैं, किन्तु शास्त्रमें कुछ उपद्रव नहीं मचाते हैं वे फूटे घड़ेके बराबर हैं। ये तीनों प्रकारके श्रोता मध्यम नहीं है तथापि ये शास्त्र, व्याख्यान आदिमें गड़बड़ नहीं मचाते हैं, इनसे जो पहले के उत्तम श्रोता हैं वे शास्त्र, व्याख्यान आदि सुनकर उसका उपयोग धारणा आदि करते हैं इसलिए उन्हें उत्तम कहा है। जैसे साँपको दूध पिलानेसे उल्टा वह जहर उलगता है वैसे ही जो हितकर जैनवाक्यको अहित कर समझते हैं, सारको असार समझते हैं और सीधेको उल्टा जानते हैं a. सर्प जैसे श्रोता होते हैं । जैसे भैंसा सारे पानीको गंदला कर देता है वैसे ही जो शास्त्र सभामें बैठ कर शास्त्रोंमें गदला पन मचा दें वे श्रोता भैंसेके मानिंद होते हैं । जैसे चलनी सारभूत आटेको नीचे गिरा देती है, असारभूत तुषोंको ग्रहण करती है वैसे ही जो श्रोता शास्त्र संबंधी सार बातको छोड़कर असार ग्रहण करते हैं वे चलनीके जैसे हैं । जैसे कंधी सिरके केसों को ग्रहण करती है वैसे ही जो वक्त के दोषोंको उकेलता रहता है वह कंघीके मांनिंद है। जैसे मच्छर जहाँ पानी देखता है वहीं रमण करता है वैसे ही जो वक्ताकी भूल हुई कि उसे घटं पकड़कर आनंद मनावे वह
हैं
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यद्यपि इनसे कुछ होता जाता इसलिए ये मध्यम श्रोता है ।