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सोमसेनभट्टारकंविरंचित-
एक गोल मण्डल खींचे, उसके बीचमें झं और ठं इन दो बीजाक्षरोंको लिखे और उसके बाहर चारों और अ आ आदि सोलह स्वर लिखे तथा उनके चारों और एक मंडल और खींच । इस प्रकारका यंत्र अपने स्नान - जल में तर्जनी के अग्रभागसे बनावे, पीछे उस जलसे स्नान करे । इस कहे हुए यंत्र को जल में लिखकर इस नीचे लिखे मंत्र से उसे मंत्रित करे ॥ ११४ ॥
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ततः वी वी हंसः ।
इति बीजाक्षरप्रयुक्तसुरभिमुद्रां प्रदर्शयन्मन्त्रमिमं पठेत् ॥
इस तरह बीजासरोंसे युक्त सुरभिमुद्राको दिखाता हुआ इस मंत्र को पढ़े । ॐ अमृते अमृतोद्भवे अमृतवर्षिणि अमृतं स्रावय स्रावय सं सं क्लीं क्लीं ब्लूं ब्लूं द्रां द्रां द्रीं द्रीं द्रावय द्रावय हं झं इवीं क्ष्वीं हं सः असि आउ सा सर्वमिदममृतं भवतु स्वाहा । इति मन्त्रेण स्नानजलममृतीकृत्य तत्र त्रिः पञ्चकृत्वो वा -
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इस मंत्र द्वारा स्नानजलमें अमृतकी कल्पना कर तीन वार या पाँच वार
ॐ ही अर्ह नमः मम सर्वकर्ममलं प्रक्षालय प्रक्षालय स्वाहा । इति मंत्रेण कुण्डलजलमध्ये प्लावनं कुर्यात् ।
इस मंत्रद्वारा उस जल में डुबकी लगा| वे ।
तत उत्थाय पूर्ववदाचम्य -- ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं ऐं अर्ह असि आउ सा जलमार्जनं करोमि स्वाहा । मम समस्तदुरितसन्तापापनोदोऽस्तु स्वाहा । इति त्रिरुच्चार्य हस्ताग्रेण मार्जनं कृत्वा तदन्ते चुलकोदकेन त्रिः परिषेचनं एकवारं कुर्यात् ।
इसके बाद उठकर पहलेके मानिंद आचमन कर इस मंत्रका तीन वार उच्चारण करे और हाथसे अपने शरीरको मले । इसके बाद चुल्लूमें जल लेकर अपने चारों और एकवार तीन
परिषेचन करे ।
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भूयः स्नात्वा आचम्य च तत्र जलतर्पणं कुर्यात् । तद्यथा