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त्रैवर्णिकाचार |
पश्चात् घरके आंगन में जाकर मध्यपीठ पर देवोंको और उस उस दिन के स्वामी देवोंको शान्ति के लिए बलि अर्पण करे ॥ १९५ ॥
न पश्वा चिरं दत्वा गृहे बलिं द्विजः । स्वयं नैवोद्धरेन्मोहादुद्धरेच्छ्रीर्विनश्यति ॥ १९६ ॥
वह द्विज घरमें बलि देकर उस भूवलिको बहुत देर तक देखता ही न रहे और न स्वयं उसे उठाकर वापिस रक्से । यदि अज्ञान से उस बलिको उठाकर वापिस घरमें रख ले तो उसकी मौजूदा लक्ष्मी नाशको प्राप्त हो जाती है ॥ १९६ ॥
चाण्डालपतितेभ्यश्च पितृजातानशेषतः । वायसेभ्यो बलिं रात्री नैव दद्यान्महीतले ।। १९७ ॥
ततोऽपि सर्वभूतेभ्यो जलाञ्जलिं समर्पयेत् । दशदिक्षु च पितृभ्यस्त्रिवर्णैः क्रमतः सदा ।। १९८ ।।
ये भूताः प्रचरन्तीति पात्रे दद्याद्वलिं सुधीः । इत्थं कुर्यात् द्विजो यज्ञान् दिवा नक्तं च नित्यशः ॥ १९९ ॥
१.११.
पांडालों, पतितों, मरकर उत्पन्न हुए पितरों और कौओंको रात्रिमें जमीन पर वलिदान न दे । सम्पूर्ण भूतोंको जलाञ्जलि समर्पण करे, और पितरोंको दशों दिशाओं में त्रैवर्णिक पुरुष जलांजलि समर्पण करे तथा बुद्धिमान गिरस्ती " ये भूताः प्रचरन्ति " इत्यादि मंत्र पढ़कर पात्रों को आहान देवे | इस प्रकार उक्त रातिसे द्विज पुरुष निरन्तर रात-दिन यज्ञ-पूजा करे ॥ ११७ ॥ १९९ ॥
स्त्रियोंका कर्तव्य ।
गृहस्त्रिया च किं कार्यं गृहकृत्यं तदुच्यते ।
भर्त्रा तु पूजिते देवे गृहदेवश्च तर्पयेत् ॥ २०० ॥
arat स्त्रियोंका कर्तव्य क्या है यह कहा जाता है । अपना स्वामी जब देवोंकी पूजा करं चुके तब वह गृहदेवोंका तर्पण करे ॥ २०० ॥
चार प्रकारक देव |
देवा तुविधा ज्ञेयाः प्रथमाः सत्यदेवताः ।
कुलदेवाः क्रियादेवाचतुर्धा वेश्मदेवताः ॥ २०१ ॥