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सोमसेनभट्टारकविरचितयदि स्त्री आदिकोंका माली आदि स्पश्य शूद्रोंसे संसर्ग होगया हो तो वे पांच प्रोषधोपवास भोर दा एकाशन करें तथा वीस पात्रोंको दान देवें ॥ ९४ ॥
सूतके जन्ममृत्योश्च प्रोषधाः पंच शक्तितः ।
एकमला दशैकाधपात्रदानं च चन्दनम् ॥ ९५ ॥ . जन्म और मृत्युसंबंधी सूतकगलेसे संसर्ग होजाय तो अपनी शक्ति के अनुसार पांच प्रोषधोपवास करे, एकसे लेकर दशपर्यंत एकाशन करे, इतने ही पात्रोंको दान और चंदन देवे ॥ ९५ ॥
आयाते सुखेऽस्थलण्ड चोपवासानयो मताः ।
एकशुक्तार्थ चत्वारा गन्धाक्षता शशितः ॥ ९६ ॥ यदि मुंहमें हड्डीका टुकड़ा चला जाय तो तीन उपवास और चार एकाशन करे। तथा अपनी शक्तिके अनुसार गन्ध अक्षत देवे ॥ ९६ ॥
स्पर्शितेऽस्थिकरे स्वाङ्गे स्नात्वा जपशतत्रयम् ।
अस्थि यथा तथा चर्मरेशश्लेष्मम लादिम् ॥ ९७॥ जिसने अपने हाथमें हड्डी ले रखी हो उससे या वैसे ही हड्डीसे अपने शरीरका स्पर्श होजाय तो स्नान कर तीन सौ जाप करे । जैसा हड्डीसे छू जानेका प्रायश्चित्त है वैसा ही चमड़ा, केश, श्लेष्म (खकार), मल, मूत्र आदिसे छू जानेका समझना चाहिए ॥ ९७ ।।
गर्भस्य पातने पापे मेषधाद्वाश स्मृताः ।
एकमत्ताश्च पञ्चाशत् पुप्पाक्षताश्च शक्जितः ॥ ९८ ॥ गर्भपातका पाप होनेपर बारह प्रोषधोपवास, पचास एकाशन और अपनी शक्तिके अनुसार पुष्प-अक्षत माने गये हैं ।। ९८ ॥
अज्ञानाद्वा प्रमादाद्वा विकलत्रयघातने ।
मोषधा द्विात्रचत्वारो जपमालास्तथैव च ॥ ९९ ॥ मशानसे अथवा प्रमादसे दो इंद्रिय, तीन-इंद्रिय और चार-इंद्रिय जीवका घात होगया हो तो क्रमसे दो उपवास, तीन उपवास और चार उपवास करे, तथा दो बार, तीन बार और चार बार पाप करे ॥ १९ ॥
घातिते तणमुजावे मोपधा अष्टाविंशतिः।
पात्रदानं च गोदान पुष्पाक्षतः स्वा. तः ॥ १० ॥ तण-चारी जीवका घात हो जानेपर अहाईस प्रोषधोपवास करे और अपनी शक्ति-अनुसार पात्र दान, गो-दान तथा पुष्प-अक्षत देवे ॥ १०० ।।
जलस्थलचरणां तुं पक्षिणां घातकः पुमान् । गृहे मूषकमार्जारवादीनां दन्तदोषिणाम् ॥ १०१ ॥ मोषधा द्वादशैकानाभिषेकाचानु षोडश । गोदानं पात्रदानं तु यथाशक्ति गुरोर्मुखात् ॥ १०२ ॥