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सोमसेनभट्टारकविरचित
अचौर्याणुव्रतका स्वरूप। निहितं वा पतितं वा सुविस्मृतं वा परस्वमविसष्टम्। ।
न हरति यन च दत्ते तदकृशचौर्यादुपारमणम् ॥ ७९ ॥ रखे हुए, गिरे हुए, गले हुए, अथवा धरोहररूप रकाव हुए पर द्रव्यको न तो स्वयं लेना और न औरोंको देना, इसे स्थूल-चौरीसे विरक्त होना-अचार्याणुव्रत कहते हैं ॥ ७९ ॥
अचौर्याणुव्रतके पांच अतीचार । चौरमयोगचौराथीदानावलोपसदृशसम्मिश्राः ।
हीनाधिकविनिमानं पञ्चास्तेये व्यतीपाताः ॥ ८० ॥ औरोंको चौरीका उपाय बताना, चौरोंके द्वारा चुराई हुई वस्तुओंको लेना, सरकारी आशाको न मानना-राजकीय टैक्सको चुराना, अधिक मूल्यकी वस्तुमें हीन मूल्यकी वस्तु मिलाकर बैंचना, और नापने तोलनेके गज, वाट, तराजू आदि लेनेके अधिक और देनेके कमती रखना, ये पांच अचौर्याणुव्रतके अतीचार हैं। अचौर्याणुव्रतीको इनका त्याग करना चाहिए ॥ ८० ॥
ब्रह्मचर्याणुव्रतका लक्षण । न च परदारान् गच्छति न परान् गमयति च पापभीतेयत् ।
सा परदारनिवृत्तिः स्वदारसन्तोपनामापि ॥ ८१ ॥ पापके भयसे न तो खुद परस्त्रीके साथ समागम करता है और न दूसरोंको कराता है, सो परदारनिवृत्ति व्रत है । इसका दूसरा नाम स्वदारसंतोष भी है ॥ ८१ ।।
ब्रह्मचर्य व्रतके पांच अतीचार । अन्यविवाहकरणानङ्गकोडाविटसाविपुलतृपः ।
इत्वरिकागमनं चास्मरस्य पञ्च व्यतीचाराः॥ ८२ ॥ औरोंके पुत्र-पुत्रियों का विवाह करना, कामभोगके अंगोंको छोड़ भिन्न अंगोंद्वारा कामक्रीड़ा करना, चकार, भकारादि भंड वचन बोलना, कामसेवनमें अधिक लालसा करना और परिग्रहीत किंवा अपरिग्रहीत व्यभिचारिणी स्त्रियोंके पास गमन करना, ये पांच ब्रह्मचर्याणुव्रतके अतीचार हैं। ब्रह्मचर्याणुव्रतीको इनका त्याग करना चाहिए ॥ ८२ ॥
परिग्रहपरिमाण व्रतका म्वरूप । धनधान्यादिग्रन्थं परिमाय ततोऽधिकेषु निस्पृहता।
परिमितपरिग्रहः स्यादिच्छापरिमाणनामाऽपि ॥ ८३॥ धन, धान्य आदि दश प्रकारके परिग्रहका परिमाण करना कि इतना रक्खेंगे, उससे अधिककी लालसा न करना, परिग्रह-परिमाण है । इसका दूसरा नाम इच्छा-परिमाण भी है ॥ ८३ ।
परिग्रहपरिमाणव्रतके पांच अतीचार । अतिवाहनातिसंग्रहविस्मयलोभातिभारवहनानि । परिमितपरिग्रहस्य च विक्षेपाः पञ्च लक्ष्यन्ते ।। ८१॥