Book Title: Traivarnikachar
Author(s): Pannalal Soni
Publisher: Jain Sahitya Prakashak Samiti

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Page 368
________________ भैवर्णिकाचार। शिलायाः स्पर्शनं पश्चात्कर्तव्यं तेन यत्नतः । अनेः प्रदक्षिणं कर्म स्पर्शनं तृणनं पुनः ॥ १३९ ॥ पूर्णाहुतिस्ततः कार्यों समन्तादुपवेशनम् । नीराजनावलोके च तथाऽऽकर्णनमाशिषः ॥ १४० ॥ पुण्याहवाचन, पंचमंडलपूजन और नव देवतोंका पूजन शास्त्रोक्त विधिके अनुसार क्रमसे करे । तथा अघोर मंत्रद्वारा होम करे और समिधाहुति दे । वर और कन्याके दोनों हाथोंसे लाजा'हुति दें। वरकी बाई तरफ कन्याको बैठावे । उन दोनों के सामनेके मंडलपर एक शिला और पत्थर स्थापित करे । शिलाके ऊपर अक्षतके सात पुंज रक्खे। इनके सामने दंपतीको खड़ा करे । अनंतर वर, मेंदी रंगे हुए कन्याके दाहिने अंगूठेको पकड़कर 'ये सात परमस्थान हैं। ऐसा संकल्प कर ऋमसे उन सात पुंजोको छुवावे । अनंतर शिला स्पर्शन करे, अमिकी प्रदक्षिणा देवे, खुव .स्पर्शन करे और पूर्णाहुति देवे । पश्चात् दोनोको बैठा दे। बैठकर दोनों आरती देखें और आशीर्वाद सुनें । भावार्थ-ऊपरके श्लोकोंमें जो विधि बताई थी उस विधिका यह क्रम है । सो जिस क्रमसे विधि लिखी गई है उसी क्रमसे करे ॥ १३३-१४० ॥ पुण्याहवाचनका संकल्प। अथ वेदिकादिग्भागे दम्पती उपवेश्य भूमिथुदि विधाय पुण्याहवाचनां पठेत् । मंत्र:-ॐ अद्य भगवतो महापुरुषस्य पुरुषवरपुण्डरीकस्य परमेण तेजसा च्यातलोकालोकोत्तममङ्गलस्य मङ्गलस्वरूपस्य गर्भाधानायुपनयनपर्यन्तक्रियासंस्कृतस्या स्य देवदत्तनाम्नः कुमारस्योपनीतिव्रतसमाप्तौ शास्त्रसमभ्यसनसमासौ समावर्तनान्ते ब्रह्मचर्याश्रमेनेतरे गृहस्थाश्रमस्वीकारार्थ अमिसाक्षिकं. देवतासाक्षिक बन्धुसाक्षिक ब्राह्मणसाक्षिक पाणिग्रहणपुरम्सरं कलने गृहीते सति अनयोर्दम्पत्योः सर्वपुष्टिसम्पादनार्थ विधीयमानस्य होमकर्मणो नान्दीमुखे पुण्याहवाचनां करिष्ये । इति मन्त्रेण पुण्याहवाचनां कृत्वा साज्यसमिधो होमयेत् । ततो व्रीहिलाजानहोम कुर्यात् । . अनंतर वेदिकाके समीय वधू और वरको बैठाकर भूमिशुद्धि करे और पुण्याहवाचनः पढ़े। तथा 'ॐ अद्य भगवतो महापुरुषस्य ' इत्यादि मंत्रद्वारा पुण्याहवाचन करके घृत और समिधाका होम करे । पश्चात् धान्य, लाजा और अन्नका होम करे। सप्तपदी-मंत्र । तंतः शिलाग्रस्थापितसप्ताक्षतपुञ्जाये करेण कन्यांगुष्ठस्पर्शनम् । .. मंत्र:-ॐ सज्जातये स्वाहा । ॐ सद्गार्हस्थ्याय स्वाहा । ॐ परमसाम्राज्याथ स्वाहा । ॐ परमपारिवाज्याय स्वाहा । ॐ परमसुरेन्द्राय स्वाहा । ॐ परमार्हन्त्याय स्वाहा । ॐ परमनिर्वाणाय स्वाहा ।। इति कन्यांगष्टेन सप्तपरमस्थानस्पर्शनमन्त्रः ।

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