Book Title: Traivarnikachar
Author(s): Pannalal Soni
Publisher: Jain Sahitya Prakashak Samiti

Previous | Next

Page 390
________________ . त्रैवर्णिकाचारी । यति-भोजनके अन्तराय। मौनत्यागे शिरस्ताडे मार्गे हि पतितं स्वयम् । मांसामेध्यास्थिरक्तादिसंस्पृष्टे शवदर्शने ॥४८॥ ग्रामदाहे महायुद्धे शुना दष्टे त्विदं पथि । सचित्तोदे करे क्षिसे शङ्कायां मलमूत्रयोः ॥ ४९ ॥ शोणितमांसचर्मास्थिरोमविट्पूयमूत्रके। दलने कुट्टने छर्दिदीपप्रध्वंसदर्शने ।। ५० ॥ ओतौ स्पृष्टे च नमस्त्रीदर्शने मृतजन्तुके। अस्पृश्यस्य ध्वनी मृत्युवाद्ये दुष्टविरोदने ।। ५१ ॥ कशाक्रन्ददुःशब्दे शुनकस्य ध्वनौ श्रुते । हस्तमुक्ते व्रते भग्ने भाजने पतितेऽथवा ॥ ५२ ॥ पादयोश्च गते मध्ये मार्जारम्पकादिके । अस्थ्यादिमलमिश्रान्ने सचित्तवस्तुभोजने ॥५३॥ आर्त द्रादिदुर्ध्याने कामचेष्टोद्भवऽपि च । उपविष्टे पदग्लानात्पतने स्वस्य मूर्छया ॥ ५४॥ हस्ताच्च्युते तथा ग्रासेऽवतिनः स्पर्शने सति । इदं मांसेति सङ्कल्पेऽन्तरायाश्च मुनेः परे ॥ ५५॥ मरतकमें किसी तरहका आघात पहुंचनेसे मौन छोड़ देनेपर, आप स्वयं मार्गमें गिर पड़नेपर, मांस, अपवित्र वस्तु, हड्डी, खून आदिका स्पर्श शेजानेपर, मरा मुर्दा देखलेनेपर, ग्रामदाह होनेपर, बड़े भारी युद्धके होनेपर, मार्गमें चलते समय कुत्तेके काट खानेपर, सचित्त पानीसे हाथ धोकर भोजन परोसनेपर, आहारग्रहण करते समय मलमूत्रकी बाधा आ उपस्थित होनेपर, रक्त, मांस, चमड़ा, हट्टी, पाल, विष्टा, पीप और मूत्रके देखनेपर, जिस घरमें भोजन कर रहे हों वहां पर दलने और कूटनेकी आवाज आनेपर, वमन देखनेपर, दीपकको बुझता हुआ देखनेपर, बिल्लीका स्पर्श होजानेपर, नंगी स्त्रीके देखनेपर, मरे हुए प्राणीके देखनेपर, अस्पर्य जातिके प्राणीकी आवाज सुन लेनेपर, मरे मुदके बाजे बजनेकी आवाज आनेपर, बुरी तरहसे रोनेकी आवाज आनेपर, अत्यंत कठोर अश्रुपूर्ण रुदनकी आवाज आनेपर, कुत्तेकी चिल्लाहट सुननेपर, हाथकी अंजलीके 'छूट जाने पर, प्रतभंग हो जानेपर,पात्रके गिर पड़नेपर, पैरोंके वीचमें होकर बिल्ली चूहे आदिक्के निकल जाने पर, हडी आदि अपवित्र वस्तुओंसे मिला हुआ भोजन होनेपर, सचित्त-अप्राशुक वस्तुके खा लेनेपर, आत-ध्यान रौद्र-ध्यान आदिके हो जानेपर, कामचेष्टाके उत्पन्न हो जानेपर, पैरोंमें कमजोरी होने के कारण बैठ जानेपर. मी खाकर गिरपड़नेपर, हायसे ग्रास गिर पड़नेपर, अनती मनुष्यका '. स्पर्श होनेपर और यह मांस है इस तरहकी कल्पना होजानेपर मुनिके भोजनमें अन्तराय हो जाते हैं। भावार्थ-ये मुनिके भोजनके अन्तराय हैं ॥ ४६.५५ ॥ . .

Loading...

Page Navigation
1 ... 388 389 390 391 392 393 394 395 396 397 398 399 400 401 402 403 404 405 406 407 408 409 410 411 412 413 414 415 416 417 418 419 420 421 422 423 424 425 426 427 428 429 430 431 432 433 434 435 436 437 438