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सोमसेनभट्टारकविरचित..... . . क्रीत-दोप।. . . . . . . . ... स्वान्यद्रव्येण यद्भोज्यं संगृहीतं यदा भवेत् ।। ८८.॥ '..'विद्यामन्त्रेणं वा दत्तं तत्क्रीत दोष इत्यसौ । .... .
अपने और परके. द्रव्यसे अथवा विद्या और मंत्र द्वारा लाई हुई भोजन-सामग्रीसे तैयार किया . हुआ आहार क्रीत दोषकर संयुक्त, है । भावार्थकीत दोपके दो भेद. है-एक द्रव्यश्रीत और दूसरा, भावक्रीत । मुनियोंको चर्यामार्ग द्वारा आते देखकर. अपने , अथवा परके गाय, बैलं आदि । सचित्त पदार्थोंको अथवा. सुवर्ण आदि अचित्त द्रव्योंको बेचकर भोजन सामग्री लाना और उसका भोजन तैयारकर मुनीश्वरोंको देना द्रव्यकीत दोष है । तथा अपनी या परकी प्रज्ञप्ति आदि-विद्याएं या चेटिका आदि मंत्र देकर भोजन सामग्री लाना और उसका भोजन बनाकर मुनीश्वरोको देना भावक्रीत दोष है। ऐसा करनेसे दाताका मुनियोंपर करुणाभाव झलकता है, भक्तिभाव नहीं; अतः मुनिश्वरोंको क्रीतदोषसंयुक्त आहार नहीं लेना चाहिए ॥ ८८ ॥ . .
प्रामित्य दोप। स्वकीयं परकीयं चेद्रव्यं यच्चेतनेतरत् ।। ८९ ॥
दत्वाऽनानयनं पात्रे पामित्यं दोष एव सः ।.. अपने या परके चेतन अथवा अचेतन द्रव्य गिरवी रखकर दाल चांवल आदि चीजें उधार लाना और उनका भोजन तैयार कर मुनियों को देना प्रामित्य दोष है। भावार्थ-मुनियोंको चर्यामार्गमें प्रविष्ट देखकर दाता दूसरेके घरपर जाकर भक्तिपूर्वक याचना करे कि मैं तुम्हारे दाल चांवल आदि जितने ले जाऊंगा उनसे कुछ अधिक या उतनेके उतने वापिस दें 'जाऊंगा, तुम मुझे ये ये चीजें देओ-ऐसा कहकर भोजन सामग्रो. लाना और. उसका आहार बनाकर देना ऋणसहित प्रामित्य दोष है। तथा चेतन-अचेतन द्रव्यको गिरवी रखकर भी भोजन-सामग्री लाना ऋणदोष है। ऐसा करनेसे दाताको क्लेश और परिश्रम उठाना पड़ता है; अतः मुनियोंको - ऋणदोषसंयुक्त आहार नहीं लेना चाहिए ॥ ८९ ॥. . . : ..
परिवर्तन दोष । . . . स्वान्नं दत्वाऽन्यगेहाद्वा यदानीयोत्तमं शुभम् ॥ ९०॥ .
अन्नं ह्यादीयतेऽत्यर्थ परिवर्तनमुच्यते। .... अपना हलका अन्न देकर दूसरेके घरसे बढ़िया. अन्न लाकर मुनियोंको देना परिवर्तन दोष है । भावार्थ- मेरे नीही तुम लेलो और मुझे शाल्योदन देओ अथवा तुम मेरी-यह चीज ले लो
और तुम मुझे यह दे दो, मैं साधुओंको दूंगा-ऐसा कहकर मुनियों के लिए आहार लाना परिवर्तन. दोष है.। ऐसा करनेसे दाताको क्लेश होता है; अतः मुनियोंको परिवर्तन दोषसंयुक्त आहार . नहीं ग्रहण करना चाहिए ॥ ९० ॥' . . .. .. . : . . . . . . . . निषिद्ध दोष . .. . . . . . . . . .
मध्ये केनापि गृहिणा निषिद्धे भोजनादिकम् ॥ ९१॥ ... दातव्यं न मुनिभ्यश्च तथापि खल्लु गृह्यते । सं निषिद्ध महादोषः परिपाट्या प्रकीर्तितः ॥ ९२ ॥ . .:...