Book Title: Traivarnikachar
Author(s): Pannalal Soni
Publisher: Jain Sahitya Prakashak Samiti

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Page 423
________________ .३४४ सोमसेनमारकावरचित । भ्रातृपत्नी-भाबी अपनी ननँदका और भगिनीपति-बहनोई अपने सालेका जिस समय मरण सुनें उस समय वे स्नान अवश्य करें तथा कुटुंबके लोग भी स्नान करें ॥ ११६ ॥ मातामहो मातुलश्च नियते वाथ तत्स्त्रियः । दौहित्रो भागिनेयश्च पित्रो म्रियते स्वसा ॥ ११७ ।। स्वगृहे त्र्यहमाशौचं परत्र स्यात्तु पक्षिणी। श्रुतं बहिर्दशाहाचेत्स्नानेनैव च शुद्धयति ॥ ११८॥ मातामह-माताका पिता, मातुल-माताका भाई, उनकी स्त्रियां, दोहिता-पुत्रीका लडका, भागिनेय-बहनका लड़का और माता पिताकी बहिनें, ये सब अपने घरपर मरें तो तीन दिनका आशौच हैं और अपने घरसे अन्यत्र मरें तो पक्षिणी आशौच है । तथा दश दिन बाद इनका मरण सुने तो स्नान मात्रसे शुद्धि है। भावार्थ-नाना और नानी, मामा और मामी, दोहिता और भानजा तथा मौसी और भुआका अपने घरपर मरनेका तीन दिन आशौच है और अन्यत्र मरनेका पक्षिणी आशौच है। तथा दशदिनसे ऊपर मरण सुने तो स्नानमात्रसे शुद्धि है ॥ ११७-११८ ॥ व्याधितस्य कदर्यस्य ऋणग्रस्तस्य सर्वदा । क्रियाहीनस्य मूर्खस्य स्त्रीजितस्य विशेषतः ॥ ११९॥ व्यसनासक्तचित्तस्य पराधीनस्य नित्यशः । श्राद्धत्यागविहीनस्य पण्डपापण्डपापिनाम् ॥ १२० ॥ पतितस्य च दुष्टस्य भस्मान्तं सूतकं भवेत् । यदि दग्धं शरीरं चेत्स्तकं तु दिनत्रयम् ॥ १२१ ॥ महारोगसे पीड़ित, कदर्य (कंजूस), कर्जदार, आचरणहीन, मूर्ख, स्त्रीके वशीभूत, व्यसनी, पराधीन, श्राद्धत्यागी, दान न देनेवाला, नपुंसक, पाषंडी, पापी, जातिच्युत और दुष्ट, इनके मरणका सूतक, भस्मान्त-जबतक शरीर दग्ध न हो तव तक हैं। यदि इनके शरीरका दग्ध स्वयं करे तो तीन दिनका सूतक है । भावार्थ-व्याधित, कदर्य, ऋणग्रस्त आदि ये शब्द साधारण है; अतः साधारण अवस्थामें भी इनका प्रयोग देखा जाता है और विशेष विशेष अवस्थाओंमें भी इन्हींका प्रयोग होता है । ऐसी दशाम जिन्हें आगम-वाक्यका श्रद्धान नहीं, जो सूतक जैसे विषयों को मानना ही नहीं चाहते वे इन शब्दोंको मामूलीसे मामूली हालतोंपर घटित करने लग जाते हैं अतः बद्धि मानोंका कर्तव्य है कि वे इन'शब्दोंकी योजना खास खास स्थलोंमें करें ॥ ११९-१२१ ॥ वतिनां दीक्षितानां च याज्ञिकब्रह्मचारिणाम् । नैवाशौचं भवेत्तेषां पितुश्च मरणं विना ॥ १२२ ॥ प्रती, दीक्षित, याशिक और ब्रह्मचारी;इनको पिता-मरणको छोड़कर सूतक नहीं है ॥ १२२ ॥ श्रोत्रियाचार्यशिष्यर्पिशास्त्राध्यायाश्च वै गुरुः । मित्रं धर्मी सहाध्यायी मरणे स्नानमादिशेत् ॥ १२३॥ श्रोत्रिय, आचार्य, शिष्य,'ऋपि, शास्त्र--पाठक, गुरु, मित्र, साधर्मी और सहाध्यायी ( साथ पढ़नेवाला) इनकी मृत्यु होनेपर स्नान करना चाहिए ॥ १२३ ॥

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