Book Title: Traivarnikachar
Author(s): Pannalal Soni
Publisher: Jain Sahitya Prakashak Samiti

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Page 433
________________ ३९४ सोमसेनभट्टारकविरचित____ ग्यारहवें दिन, एक दहन करनेवालेको, एक वस्त्राभूषण पहनानेवालेको और चार कंधेपर उठाकर लेजानेवालोंको एवं छह पुरुषोंको नान कराकर भोजनसे तृम करे ॥ १९१ ॥ बारहवें दिनका कर्तव्य । द्वादशे दिवसे श्रीमज्जिनपूजापुरस्सरम् । मुनीनां वान्धवानां च श्राद्धं कुर्यात्समाहितः ।। १९२ ॥ श्रद्धयाऽन्नपदानं तु सद्भ्यः श्रादमितीप्यते । मासे मासे भवेच्छ्राद्धं तदिने वत्सरावधि ।।.१९३ ॥ अत ऊच भवेदब्दश्राद्धं तु प्रतिवत्सरम् । आद्वादशाब्दमेवैतक्रियते प्रेतगोचरम् ।। १९४ ।। बारहवें दिन जिनभगवान् की पूजा करे, मुनियोंका और वांधवोंका श्राद्ध करे-उन्हें आहार धान दे । साधर्मी सजनोंके लिए श्रद्धापूर्वक आहार दान देने को श्राद्ध कहते हैं । यह श्राद्ध एक वर्षपर्यन मृतक तिथिके रोज प्रति माह करे। इसे मासिक श्राद्ध कहते हैं । अनन्तर बारह वर्ष तक प्रतिवर्ष श्राद्ध करे ( इसे वार्षिक श्राद्ध कहते हैं) ॥ १९२-१९४ ।। मृतबिंबकी स्थापना! . . सुप्रसिद्ध मृते पुंसि सन्यासध्यानयोगतः । तद्विम्बं स्थापयेत् पुण्यप्रदेशे मण्डपादिके ।। १९५ ॥ सन्यास विधिसे या ध्यान समाधिसे कोई प्रसिद्ध पुरुष मरे तो पुण्य-स्थानमें मंडप वगै. रह बनवाकर उसमें उसके प्रतिबिंब (चरणपादुका वगैरह ) की स्थापना करे ॥ १९५ ।। वैधव्य-दीक्षा। मृते भर्तरि तज्जाया द्वादशाहि जलाशये । स्नात्वा वधूभ्यः पञ्चभ्यस्तत्र दद्यादुपायनम् ।। १९६ ॥ भक्ष्यभोज्यफलैर्गन्धवस्त्रपुष्पपणैस्तथा। . ताम्बूलैरवतंसैश्च तदा कल्प्यमुपायनम् ॥ १९७ ॥ विधवायास्ततो नार्या जिनदीक्षासमाश्रयः। श्रेयानुतस्विद्वैधव्यदीक्षा वा गृह्यते तदा ॥ १९८ ॥ . पतिका परलोकवास हो जानेपर उसकी स्त्री बारहवें दिन जलाशयपर स्नानकर पांच स्त्रियोंको उपायन-भेंट दे । उत्तम भोजन, फल, गंध, वस्त्र, पुष्प, नकद रुपया-पैसा, तांबूल अवतंस वगैरह देना उपायन है । इसके अनन्तर यदि वह विधवा स्त्री जिन-दीक्षा-आर्यिका या क्षुल्लिकाके बत ग्रहण करे तो सबसे उत्तम है, अथवा नहीं तो वैधव्य-दीक्षा ग्रहण करे ॥ १९६-१९८॥ वैधव्य अवस्थाके कर्तव्य । तत्र वैधव्यदीक्षायां देशव्रतपरिग्रहः । कण्ठसूत्रपरित्यागः कर्णभूषणवर्जनम् ॥ १९९॥ .

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