Book Title: Traivarnikachar
Author(s): Pannalal Soni
Publisher: Jain Sahitya Prakashak Samiti

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Page 421
________________ . सोमसेनभट्टारकविरचित पति मरनेपर दशवें दिन यदि स्त्री प्रसूति हो जाय या रजस्वला होजाय तो वह अपने नियत समः यपर शुद्ध होकर और स्नानकर वस्त्राभरणोंका त्याग करें : यहांतक स्त्रियों के विषयमें विचार किया। आगे दुर्मरण आदिका विचार करते हैं ॥ १०१॥ . इमरणा दुर्मरण। . . विद्युत्तोयाग्निचाण्डालसर्पपाशद्विजादपि । .. वृक्षव्याघ्रपशुभ्यश्च मरणं पापकर्मणाम् ॥ १०२ ॥ विजली, जल, अमि, चांडाल, सर्प, व्याध, पक्षी, वृक्ष, व्याघ्र, तया अन्य पशु इत्यादिके द्वारा पापियोंका मरण होता है ॥ १०२ ॥ आत्मानं घातयेद्यस्तु विषशस्त्राग्निना यदि । स्वेच्छया मृत्युमाप्नोति स याति नरकं ध्रुवम् ।। १०३ ।। . . . देशकालभयाद्वापि संस्कनु नैव शक्यते। . नृपाद्याज्ञां समादाय कर्तव्या प्रेतसक्रिया ॥ १०४ ॥ वर्षापूर्वं भवेत्तस्य मायश्चित्तं विधानतः। शान्तिकादिविधि कृत्वा मोषधादिकसत्तपः ॥ १०५॥ मृतस्यानिच्छया सद्यः कर्तव्या प्रेतसत्क्रिया। पायश्चित्तविधिं कृत्वा नैव कुर्यान्मृतस्य तु ॥ १०६॥ शस्त्रादिना हते सप्तदिनादाक् मृतो यदि। . . भवेद्दुमरणं पाहुरित्येवं पूर्वमूरयः ॥१०७॥ जो विष, शस्त्र, अमि आदिके द्वारा आत्मघात कर स्वेच्छासे मरणको प्राप्त होता है वह सीधा नरकको जाता है। ऐसे मनुष्यका देश और कालके भयसे दाह-संस्कार नहीं कर सकते हो तो राजा आदिकी आज्ञा लेकर उसकी दाइक्रिया करना चाहिए । एक वर्ष बाद शांतिविधि करके उसका विधिपूर्वक उपवास आदि प्रायश्चित्त ग्रहण करे। यदि वह अपनी अनिच्छासे विषादि द्वारा मरणको प्राप्त हुआ हो तो उसका दाह-संस्कार तत्काल करे । उसके इस अनिच्छा मरणकाः प्राय.. श्चित्त नहीं भी ले । शस्त्र आदिका प्रहार होनेपर सात दिनके पहले यदि उपका मरण.हो जाय तो . वह दुर्मरण है, ऐसा पूर्वाचार्य कहते हैं ॥ १३०-१०७ ॥ __ अथ पुत्रीप्रसंगः-कन्यामरणका आशौच । कन्यानां मरण चौलामाग्वन्धोः स्नानमिष्यते । .. व्रतात्मागघमेकाहं विवाहात्माग्दिनत्रयम् ॥ १०८॥ ऊढानां, मरणे. पित्रोराशौचं पक्षिणी मतम् । . ज्ञातीनां त्वाप्लवो भर्तुः पूर्ण पक्षस्य चोदितम् ॥ १०९ ॥ चौल-संस्कारसे पहले कन्याका मरण हो तो बंधुओंको सिर्फ स्नान कहा है-वे स्नानकर लेनेसे ही शुद्ध हो जाते है । व्रतबंघसे पहले मरण हो तो एक दिनका. सूतक मनावें और विवाहसे .

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