Book Title: Traivarnikachar
Author(s): Pannalal Soni
Publisher: Jain Sahitya Prakashak Samiti

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Page 424
________________ AryanvNRNVvvww त्रैवर्णिकाचार। समारब्धेषु वा यज्ञमहन्यासादिकर्मसु । वहद्रव्यविनाशे तु सद्यः शौचं विधीयते ॥ १२४ ॥ यश, महान्यास जैसे बड़े बड़े धार्मिक प्रभावनाके कार्योंका समारंभ कर दिया हो और अपने प्रचुर द्रव्यका विनाश होता हो, ऐसी दशामें किसी कुटुंबीका मरण हो जाय तो सद्य-तत्काल शुद्धि कही गई है । भावार्थ-ऐसी दशा स्नान मान कर लेनेपर शुद्ध है ॥ १२४ ॥ संन्यासविधिना धीमान् मृतश्चेद्धार्मिकस्तदा । ब्रह्मचारी गृहस्थश्च देहसंस्कार इष्यते ॥ १२५ ।। कायमाने गृहादाखे शव पक्षाल्य नूतनैः । वसनैर्गन्धपुप्पाधैरलंकुर्याद्यथोचितम् ॥ १२६ ।। अथ संस्कृतये तस्य लौकिकाग्निं यथाविधि । आदाय मयते देशे कुर्यादौपासनानलम् ॥ १२७ ।। कोई बुद्धिमान् धर्मात्मा ब्रह्मचारी और गृहस्थ यदि सन्यास-विधिसे मरणको प्राप्त हो तो उसके देहका संस्कार इस तरह कहा गया है कि उसके मृतशरीरको घरसे बाहर लायें, वहां उसका जलसे प्रक्षालन करें और नवीन वस्नोंसे तथा गम्ध, पुष्प आदिसे यथोचित अलंकृतं फरें । अनन्तर जहां उसके शरीरका संस्कार करना हो वहां संस्कारके लिए विधिपूर्वक लौकिक अमि (चूल्हेकी अमि) को आपासन अग्नि बनावें ॥१२५-१२७॥ विद्वद्विशिष्टपुरुपशवसंस्करणाय वै । एप औपासनोऽग्निः स्यादन्येपां लौकिको भवेत् ॥ १२८ ॥ विशेष बुद्धिमान् पुरपोंके शवसंस्कार के लिए यह औपासन अग्नि काममें लेनी चाहिए, और सर्वसाधारणके लिए लौकिक अनि ॥ १२८॥ कन्याया विधवायाश्च सन्तापानिरिहेष्यते । अन्यासां वनितानां स्यादन्वाग्निरिह कर्मणि ॥ १२९ ।। कन्या और विधवाके शरीर-संस्कारार्थ संतापानि कही गई है और अन्य स्त्रियों के लिए अन्वमि ।। १२९ ॥ ' लौकिक अग्निका ग्रहण और उसका लक्षण । द्विजातिव्यतिरिक्तानां सर्वेषां लौकिको भवेत् । गृहे पाकादिकार्यार्थ प्रयुक्तो, लौकिकोऽनलः ॥ १३० ॥ द्विजन्मीको (जिनका यज्ञोपवीत संस्कार हुआ हो उनको) छोड़कर अन्य सपके शव-संस्कार के लिए लौकिक अग्नि मानी गई है । घरमें भोजन बनानेके लिए जो चूल्हेको अनि होती है उसे लौकिक अमि कहते हैं ॥ १३० ॥ . " औपासन-अग्निका लक्षण ! योग्यप्रदेशे संस्थाप्य द्रव्यस्तैः शास्त्रचोदितैः ।। हुत्वा संस्कृत्य वाह्या निरौपासन इति स्मृतः ॥ १३१ ।।

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