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श्रेणिकाचार।
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पहले मरण हो तो तीन दिनका सूतक धारण करें । विवाहिताका पतिके घरपर मरण 'हो तो उसके माता-पिता पक्षिणी आशौच मनावें। बंधुवर्ग स्नान करें। तथा उसके पति पक्षवाले पूर्ण दश दिनका सूतक पालें ॥ १०८-१०९ ॥
पक्षिणीलक्षण-पक्षिणी आदिका लक्षण । द्विदिवा रात्रिरेका च पक्षिणीत्यभिधीयते। अहोरात्रमिति मोक्तं नैशिकीत्यभिधीयते ॥ ११० ॥ आसायमहरेव स्यात्सधस्तत्काल उच्यते ।
एवं विचार्य निर्णीतमाशौचे तु मनीषिभिः ॥ १११॥ दो दिन और एक रातको पक्षिणी कहते हैं। एक दिन और एक रातको नैशिकी-रात्रि कहते हैं । सूर्योदयसे लेकर सूर्यास्ततकके कालको दिन कहते हैं और सद्य तत्कालको कहते हैं। .. इस तरह इस आशाच प्रकरणमें मनीषियों (बुद्धिमानों) ने कालका निर्णय किया है ॥११० १११॥
मस्तास्वथवा तासु मृतासु पितृसदनि ।
मात्रादीनां त्रिरात्रं स्यात्तत्पक्षस्यैकवासरम् ॥ ११२ ॥ पिताके घर पर प्रसूति हो या मरणको प्राप्त हो तो उसके मातापितां तीन रातका और उनके पंधुवर्ग एक दिनका आशौच पालें ॥ ११२ ॥
पुत्रीके लिए आशौच । पुत्रीगृहेऽथवान्यत्र ममृतौ पितरौ यदि ।
दशाहाभ्यन्तरे पुन्यास्त्रिरात्रं शावसूतकम् ।। ११३ ।। पुत्रीके घरपर या अन्यत्र उसके माता-पिता मरणको प्राप्त हों तो दश दिनके भीतर भीतर जब कभी मालूम हो तभी उसके लिए तीन रातका मृतक सूतक है ॥ ११३ ॥
स्वमुर्गृहे मृतो भ्राता भ्रातुर्वाथ गृहे स्वसा ।
आशौचं त्रिदिनं तत्र पक्षिण्यौ वा परत्र तु ॥ ११४ ॥ बहन के घरपर भाई या भाईके घरपर बहन मरणको प्राप्त हो तो दोनोंके लिए तीन तीन दिनका सूतक है और यदि इनका कहीं अन्यत्र मरण हो तो दोनोंक लिए एक एक पक्षिणी (एक दिन, एक रात और एक दिन एवं डेढ़ दिनका ) सूतक है ॥ ११४ ॥
भगिनीसूतकं चैव भ्रातुश्चैवाथ सूतकम् ।
नैव स्याद्भावपल्याश्च तथा च भगिनीपतेः ।। ११५ ॥ . भगिनीका सूतक भ्रातुपत्नीको और भाईका सूतक भगिनीपतीको नहीं है । भावार्थ-ननदका सूतक उसकी भावीको और सालेका सूतक उसके बहनोईको नहीं लगता। किन्तु-॥११५॥ .
परस्परं श्रुते मृत्यौ स्वस्वभावोस्तदा तयोः। पल्याः पत्युभवेत्स्नानं कुटुम्बिनामपि स्मृतम् ॥ ११६ ॥