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त्रैवार्णकाचार। . शूर्पण स्नापयेद्नेही दशवारं ततो जलैः।। पञ्चपल्लवसंकल्पैः पञ्चगव्यैः कुशोदकैः ॥ ९३ ॥ कारयित्वा ततः स्नानमभिषिञ्चेत्कुशोदकैः । . .
दाहयित्वा विधानेन मन्त्रवत्पैलमेधिकम् ॥ ९४ ॥ .. प्रसूति स्त्री दश दिनके भीतर भीतर यदि मर जाय तो उसकी शुद्धि कैसे हो और कैसे उसकी दाइ-क्रिया की जाय ? इस प्रश्नका उत्तर यह है कि गृहस्थ पुरुष उस 'मृत प्रसूताको सूप में जल भर भरकर दश स्नान करावे । अनार शुद्ध (केवल) जलसे, पांच पत्तोंके जलसे, पंचगव्यसे और कुशोदकसे क्रमसे स्नान कराकर पुनः कुशोदकसे उसका अभिषेक करे । पश्चात् उसकी विधिपूर्वक दाक्रिया करे ।। ९२-९४ ॥
गर्भिणी-मरण । प्रवक्ष्यामि क्रमेणैव शौचं हि गृहमेधिनाम् । गर्भिण्यां तु मृतायां तु कथं कुर्वन्ति मानवाः ॥ ९५ ॥ गर्भिण्या मरणे मारे षण्मासाभ्यन्तरे यदि । सहैव दहनं कुर्याद्गर्भच्छेद न कारयेत् ॥ ९६ ॥ प्रेता स्मशानं नीलाथ भर्ता पुत्रः पितापि वा। छेदयेदूर्वा षण्मासाज्येष्ठम्रातापि वोदरम् ॥ ९७ ।। नाभेरधो वामभागे गर्भच्छेदो विधीयते। ततः पुण्याहमन्त्रेण सेचयेद्वालकान्विताम् ॥ ९८॥ जीवन्तं वालकं नीत्वा पोपणाय प्रदापयेत् । उदरं चावणं कृत्वा पृपदाज्येन पूरयेत् ॥ ९९ ॥ मृद्भस्मकुशगन्धोदः पंचगव्यैः सुमन्त्रितैः ।
स्नापयित्वा पिधायान्यस्त्रिं तच्चाथ तां दहेत ।। १००॥ . गृहस्थोंकी शुद्धि क्रमसे कहेंगे। गर्मिणी स्त्री मर जाय तो दाह-विधि कैसे की जाय ? प्रथम इसी प्रश्नका उत्तर देते हैं कि गर्भवती स्त्री गर्भके छह महीनोंके पहले पहले मर जाय तो उसका गर्भ-सहित ही दहन करें, गर्मच्छेद न करें। यदि गर्भ छह महीनोंसे ऊपरका हो तो उस मृत गर्मिणीको स्मशानमें ले जावे, वहां लेजाकर उसका पति या पत्र या पिता या बड़ा भाई इनमें से कोई उसके नाभिसे नीचे के बायें भागकी तरफके उदरको चीरकर, बच्चेको बाहर निकालें। अनन्तर पुण्याहवाचन मंत्रद्वारा बालकसहित उसका अभिरेचन करें। यदि बालक जीता हो तो उसे पालन-पोषण के लिए दे देवें । उद्रके छेदमें दही-घृत भरकर मूंद दें। अनन्तर मंत्रित किये हुए मृत्तिका, भस्म, दर्भ और चंदनमिश्रित जलसे और पंचगव्यसे स्नान कराकर दूसरे स्त्र पहनाकर उसकी दाहक्रिया करें ।। ९५-१०.॥
मृते पत्यौ दशाहे स्त्री सूयते च रजस्वला । भूत्वा शुद्धा यथाकालं स्नात्वा चाभरणं त्यजेत् ॥ १०१॥ . .