Book Title: Traivarnikachar
Author(s): Pannalal Soni
Publisher: Jain Sahitya Prakashak Samiti

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Page 399
________________ ३६० सोमर्सेनभट्टारकविरचितं 'निसैनी आदिपर चढ़कर घर के दूसरे तीसरे मंजिल परसे लाकर आहार देना मालारोहण दोष है । भावार्थ - आहार स्थानसे उपरकी मंजिल पर सीढ़ी निसैनी आदिपर चढ़कर वहां से आहार लाकर देना मालारोहण दोष है । इसमें आहार दाताका गिर पड़ना आदि अपाय देखा जाता है; इसलिए यह दोष है। इस तरह सोलह उद्गम दोष कहे । आगे सोलह उत्पादन दोषोंको कहते हैं ॥ ९६ ॥ धानी दोष | PASHARNAR DU Ind ! मज्जनं मण्डनं चैव क्षीरपानादिकारकं । क्रीडनं तनुजां स्वाप विधिर्यः क्रियते ध्रुवं ॥ ९७ ॥ .. गृहिणीमेव चोद्दिश्य यदुत्पादितमनकम् । तद्धात्रीदोष इत्येष कीर्तनीयो मनीषिभिः ॥ ९८ ॥ घरकी स्त्रियोंके करने योग्य बालकोंको स्नान कराना, आभूषण पहनाना, दुग्ध पिलाना, खेल.. खिलाना, सुलाना - इस तरह की पांच क्रिया स्वयं करके या इन पांचोंका उपदेश देकर आहार लेना सो धात्री दोष है । भावार्थ स्नानादि पांच प्रकारके धात्रीकमाद्वारा आहार लेना धात्री दोष है ।। ९७-९८ ।। भृत्य दोष | स्वपरग्रामदेशादेरादेशं च निवेद्य च । गृह्णाति किञ्चिदाहारं दोपस्तद्भृत्यसंज्ञकः ।। ९९ ।। अपने ग्राम और देशंके समाचार दूसरे ग्राम और दूसरे देशको ले जाकर आहार ग्रहण करना सो भृत्य या दूत नामका दोष है । भावार्थ – कोई साधु नाव आदि द्वारा जलमार्ग होकर या स्थलमार्ग होकर या आकाश मार्ग होकर परग्राम या परदेशको जा रहा हो, उसे जाते देख कोई गृहस्थ यह कहे कि, हे भट्टारक ! मेरा एक संदेशा लेते जाना । उसके उस संदेशको ले जाकर वह मुनि उसे कहे जिसके पास वह संदेश भेजा गया है । संदेशा सुनकर वह परग्राम या परदेश निवासी पुरुष परम संतुष्ट हुआ उस साधुको आहार दे और वह साधु उसके उस दिये हुए आहारको ले तो वह आहार दूत- दोषसे युक्त माना गया है । अतः दूत कर्मद्वारा आहार उत्पन्न कर मुनियों को नहीं लेना चाहिए | क्योंकि दूतकर्म द्वारा आहार लेनेसे जिनशासन में मलिनता आती है ।। ९९ ।। निमित्त दोष । व्यञ्जनाङ्गस्वरच्छिन्नभौमान्तरिक्षलक्षणम् । स्वप्नं चेत्यष्टनिमित्तं करोति तन्निमित्तकम् ॥ १०० ॥ व्यंजन, अंग, स्वर, छेद, भौम, अंतरिक्ष, लक्षण और स्वप्न- इन आठ निमित्तोंद्वारा आहार उत्पन्न कर ग्रहण करना निमित्त दोष है । भावार्थ -- तिल, मसा आदि व्यंजन कहे जाते हैं । शरीरके हाथ-पैर. आदि अवयवोंको अंग कहते हैं । स्वर नाम आवाजका है । खड्ग आदिके घावको छेद कहते हैं । भूमिका फट जाना, भौमनिमित्त है । सूर्य-चंद्रमा आदिके उदय और अस्तको अंतरिक्ष कहते हैं । नंदिकावर्त, पद्म, चक्र आदि लक्षण माने गये हैं । स्वममें हाथीपर चढ़ना, विमानमें बैठना, महिष ( भैंसा ) पर चढ़ना आदिका देखना स्वप्न है । इन आठ निमिचोंको देखकर दूसरे के शुभाशुभ

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