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सोमसेनभट्टारकविरचित। . . पातमें भी जितने महीनेका पात हो उतने दिनों तकका सूतक माताके लिए है, तथा अन्य भाई-बंधुओं और पिताके लिए एक दिनका सतक है । गर्भपात सूतकके अनन्तर सब लोग . स्लान करें।॥ ४५ ॥
___. . प्रसूति-सूतक ।
भमूतौ चैव निर्दोष दशाई सतकं भवेत् । ___ क्षत्रस्य द्वादशाहं सच्छूद्रस्य पक्षमात्रकम् ॥ ४६॥
निर्दोष प्रसति-बालकोत्पत्तिको दश दिनका तक है परंतु क्षनिको पारद दिनका और प्रशस्त शूद्रोंको पंद्रह दिनका है । इतना विशेष समझना कि राजाके लिए सूतक नहीं है ।। ४६ ॥ .. त्रिदिनं यत्र विभाणां वैश्यानां स्याचतुर्दिनम् ।
क्षत्रियाणां पञ्चदिनं शूद्राणां च दिनाष्टकम् ॥४७॥ ब्राह्मणों को जहां तीन दिनका स्तक हो वहां वैश्योंको चार दिनका, शानियों को पांच दिनका और शूद्रोंको आठ दिनका है । भावार्थ ... आगे जहां सूतक विधान कहा जायगा वहां वह सब दश दिनके क्रमानुसार कहा जायगा उसमें यह व्यवस्था लगा लेनी चाहिए ।। ४७ ॥
मरणाशौच ।
गौच। नाभिच्छेदनतः पूर्व जीवन् यातो मृतो यदि ।
मातुः पूर्णमतोऽन्येषां पितुश्च त्रिदिनं समम् ।। ४८ ॥ जीता उत्पन्न हुआ बालक, नाभिनालके छेदनसे पहले ही मर जाय तो उसका सतक माताके लिए पूर्ण दश दिनका है । तथा बालकके पिता, भाई और अन्य चौथी पीढ़ी तकके सपिंडोंके लिए तीन दिनका है ।। ४८॥
मृतस्य प्रसवे चैव नाभिच्छेदनतः परम् ।
मातुः पितुश्च सर्वेषां जातीनां पूर्णमृतकम् ॥ ४९ ॥ मरा हुआ ही बालक उत्पन्न हो या नाभिनालके छेदनेके पश्चात् मरणको प्रास हो तो उसके माता, पिता और सपिंड बांधवोंको पूरे दश दिनका सूतक है ॥ ४९ ॥
अनतीतदशाहस्य बालस्य मरणे सति ।
पित्रोदेशाहमाशोचं तदपैति च मूतकात् ॥ ५० ॥ दश दिन न होने पावे उसके पहले ही यदि बालक मर जाय तो सबको उन्ही दश दिनोंतकका सतक है। भावार्थ-अपरके श्लोकमें नाभिनाल छेदनेके बाद मरणको प्राप्त हुए बालकका सूतक सब बांधवोंके लिए दश दिनका कहा गया है, उसके भी बाद यदि बालक मरणको प्राप्त हो तो उसका स्तक और भी अधिक होगा इस संदेहको दूर करते हुए ग्रंथकार कहते हैं कि दश दिनोंसे पहले पहले कभी भी मरे हुए चालकका सूतक दशवें दिनतक ही रहता है, दश दिनसे ऊपर नहीं ॥ ५ ॥
दशाहस्यांत्यदिवसे मृतांदूर्ध्व दिनद्वयम् । अर्घ ततः प्रभाते तु दिवसत्रितयं पुनः ॥ ५१ ॥ . . . . . .