Book Title: Traivarnikachar
Author(s): Pannalal Soni
Publisher: Jain Sahitya Prakashak Samiti

Previous | Next

Page 414
________________ त्रैवर्णिकाचार | इस श्लोकका भाव बराबर समझमें नहीं आया है । पर तौभी ऐसा मालूम पड़ता है कि दश दिन बालक मरे तो दो दिनका सूतक, और दश दिनकी रात बीतकर सूर्योदयके पहले पहले मरे तो तीन दिनका सूतक है । यह लोक ब्रह्मसूरि त्रिवर्णाचार में भी है। वहां इससे आगे एक श्लोक और है, जो दश दिनके बाद ग्यारवें आदि दिनोंमें मरे हुए बालकका सूतक माता-पिता के लिए - दश दिनका करार देता है । अतः हमारी समझसे यह अर्थ उपयुक्त मालूम पड़ता है ॥ ५१ ॥ नाम्नः प्राक् प्रस्थिते बाले कर्तव्यं स्नानमेव च । / तिलोदकं तदूर्ध्वं तु तत्पिण्डश्च व्रतात्परम् ।। ५२ ।। नामकरण से पहले बालक मरे तो स्नान करना चाहिए। नामकरण बाद मरे तो स्नान करें 'और तिलोदक देवें । तथा उपनयन संस्कार के बाद मरे तो स्नान करें, तिलोदक दें और पिंड दें ॥ ५२ ॥ संस्कारः स्यान्निखननं नाम्नः माक् बालकस्य तु । तदर्ध्वमशनादवग्भवेद्दनं च वा ॥ ५३ ॥ fararने विधातव्ये संस्थितं बालकं तदा । वस्त्राद्यैर्भूपितं कृत्वा निक्षिपेत्काष्ठवद्भुवि ॥ ५४ ॥ ३७५ नामकरणसे पहले मरे हुए बालकका शरीर-संस्कार खनन अर्थात् जमीनमें गाड़ना है । नामकरण के बाद और अशनक्रिया से पहले मरे हुएका खनन अथवा दहन है । भावार्थ- नामकरणके पहले मरे तो जमीनमें गाढ़ें । तथा नामकरणके बाद और अशनक्रियासे पहले मरे तो उसे जमीनमें गाड़ें या जलावें ॥ ५३ ॥ : दन्तादुपरि वालस्य दद्दनं संस्कृतिर्भवेत् । तयोरन्यतरं वाऽऽहुर्नामोपनयनान्तरे ॥ ५५ ॥ मरे हुए बालकको जमीनमें गाड़ना हो तो उसे वस्त्र पहनाकर गढ़ा खोदकर उसमें लकड़ीकी तरह लंबा सुला दें || ५४ ॥ 'जातदन्तशिशोनशे पित्रोर्भ्रातुर्दशाहकम् । प्रत्यासन्नसपिण्डानामेकरात्रमधे भवेत् ॥ ५६ ॥ अप्रत्यासनबन्धूनां स्नानमेव तदोदितम् । 'आचतुर्थात्समासना अनासन्नास्ततः परे ।। ५७ ।। त्रपने भूपणे वाहे दहने चापि संस्थितम् । संस्पृशेयुः समासन्ना न त्वनासन्नवान्धवाः ॥ ५८ ॥ दांत उग आने बाद बालक मरणको प्राप्त हो तो उसका दहन - संस्कार करें । अथवा नामकरण और उपनयनसे पहले मरे हुए बालकका संस्कार खनन और दहन इन दोनों में से एक करें । यद्यपि विकल्पमें यह बात कही गई है तो भी इसका निर्वाह इस तरह करना चाहिए कि तीसरे वर्ष जो चूलाकर्म होता है उस चूलाकर्म से पहले और नामकरणके बाद अर्थात् कुछ कम दो वर्ष तक तो जमीन ही गाड़ें, पश्चात् तीन वर्ष पूर्ण न हों तबतक जमीनमें गाड़ें या जलानें- दोनों में से एक करें | तीन वर्षके बाद जमीनमें न गाड़ें किन्तु जलावें ॥ ५५ ॥ -

Loading...

Page Navigation
1 ... 412 413 414 415 416 417 418 419 420 421 422 423 424 425 426 427 428 429 430 431 432 433 434 435 436 437 438