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सोमसेनभट्टारकविरचित
वातादिसे उपहत हो, नग्न अर्थात् शरीरपर दुपट्टा आदि ओदे हुए न हो; बेहोश होकर उठा हो, वमन करके आया हो, जिसके खून चुचाता हो, जो वेश्या-दानी हो, आधिका हो, पंचश्रमणिका हो, तल मालिश करनेवाली हो, अत्यंत बालक हो, अत्यंत वृद्ध हो, भोजन करती हुई हो, अंधी हो, भीत. आदिके ओटमें खड़ी हो, बिलकुल पासमें बैठी हो, अपनेसे ऊंचे स्थानमें बैठी हो, जो अमि जला रही हो, अनि फूकः रही हो, भस्मसे अमि बुझा रही हो, लीप रही हो, स्नान कर रही हो, स्तनपान करते बालकको छोड़कर आई हो, तथा जो जातिच्युत हो । तात्पर्य-ऐसी हो या पुरुषके हाथका आहार लेना दायक-दोप है ॥ ११५ ॥ . . . .
लिप्त-दोप। . . . . अप्रासुकेन लिप्तेन हस्तेनैव विशेषतः ।। ११६ ।। • भाजनेन दंदात्यन्नं लिप्तदोपः स कीर्तितः । अप्रासुक जल आदिसे गीले हाथोंसे आहार देना तथा अप्रासुक चीजोंस लिप्त वर्तनमें रखकर आहार देना लिप्त-दोष कहा गया है ।। ११६ ॥..
मिश्र-दोष आमपात्रांदिके पात्रे सचित्तेनाई मिश्रितम् ॥ ११७ ॥
ददात्याहारकं भक्त्या मिश्रदोषः प्रकीर्तितः । ... सचित्त मिट्टीके वर्तन में रखकर तथा सचित्त जलादिकसे मिश्रित आहार देना मिश्र-दोष है। भावार्थ सचित्त मिट्टी, सचित जव, गेहूं आदि वीज, सचित्त पत्ते, पुष्प, फंल आदि तथा जिद या मृत द्वीन्द्रियादि उस जीवोंसे मिला हुआ आहार मिश्र-आहार कहलाता है॥ ११७ ॥ . ....... . . . अंगार-दोप।
· गृध्या यो मच्छितं ह्यन्नं भुक्त चाङ्गारदोषकः॥ ११८ ॥ सुध-बुध न रखकर अत्यंत लंपटताके साथ आहार करना अंगार-दोप है ॥ ११८ ॥
धूम-दोष और संयोजन-दोप। . भोज्याघलाभे दातारं निन्दन्नत्ति स धूमकः ।
शीतमुष्णेन संयुक्तं दोषः संयोजनाः स्मृतः ॥ ११९ ॥ .. मनोभिलषित आहार न मिलनेपर दाताकी निंदा करते हुए आहार ग्रहण करना धूम-दोष है.। तथा गर्म आहारसे ठंडा आहार और ठंडेसे गर्म आहार मिलाना संयोजनान्दोष है ॥ ११९ ॥
: अप्रमाण-दोष । ममाणतोऽन्नमत्यत्ति दोपश्चैषोऽप्रमाणकः । ।
इत्येवं कथिता दोषाः षट्चत्वारिंशदुक्तितः ॥ १२० ॥ . प्रमाणसे अधिक आहार करना अप्रमाण-दोष है। भावार्थ-उदरके चार भाग करना, दो भागोंको आहारसे भरना, एकको जलसे भरना और चौथे भागको खाली रखना प्रमाणभूत आहार है। इस प्रमाणसे अधिक आहार ग्रहण करना अप्रमाण-दोष है । इस तरह यहांतक छयालीस दोष क कयन किया ॥ १२० ॥....... ....:":: . . . . . . . . . .