Book Title: Traivarnikachar
Author(s): Pannalal Soni
Publisher: Jain Sahitya Prakashak Samiti

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Page 388
________________ wwwwwwwwaawanwarmurned त्रैवर्णिकाचार। ३४९ वाईस परीषहोंके नाम । वृद्ध्यर्थं तपसां साध्याः क्षुधादिकपरीषहाः। क्षुवृद्शीतोष्णदंशाश्च रत्यरतिश्च नग्नता ॥ ३१ ॥ नारी चर्या निषद्या च शय्याक्रोशवधास्तथा । याञ्चालाभतणस्पशा मलरोगाविति द्वयम् ॥ ३२ ॥ सत्कारश्च पुरस्कारः प्रज्ञाज्ञानमदर्शनम् । एते द्वाविंशतिर्जेयाः परीषहा अघच्छिदः ॥ ३३ ॥ तपश्चरणको वृद्धि के लिए पापोंका नाश करनेवाली बाईस क्षुधादि परीषहोंको सहन करना चाहिए । क्षुधा, तृषा, शीत, उष्ण, दंशमशक, अरति, नमता, स्त्री, चर्या, निषद्या, शय्या, आक्रोश, वध, याचना, अलाभ, तृणस्पर्श, मल, रोग, सत्कार-पुरस्कार, प्रज्ञा, अज्ञान और अदर्शनये उनके नाम हैं ॥ ३१-३३ ॥ . मुनियोंके अठाईस मूलगुणों के नाम । अष्टाविंशतिसंख्याता मूलगुणाश्च योगिनः। . व्रतसमितीन्द्रियनिरोधाः पृथक् ते पञ्चपञ्चधा ॥ ३४॥ षडावश्यकका लोचोऽदन्तवणमचेलता । स्थितिभोजनं भूशय्या अस्नानमेकभोजनम् ॥ ३५ ॥ मुनियों के अहाईस मूलगुण होते हैं। वे ये हैं-पांच महाव्रत, पांच समिति, पांचों इन्द्रियोंका निरोध, छह आवश्यक, केशलोंच, अदन्तवन, 'अचेलकत्व, स्थितिभोजन, भूशयन, अस्नान और एकभक्त । ३४-३५ ॥ छह आवश्यक क्रियाओंके नाम। . . सामायिक तनूत्सर्गः स्तवनं वन्दनास्तुतिः । प्रतिक्रमश्च स्वाध्यायः पडावश्यकमुच्यते ॥ ३६॥ सामायिक, फायोत्सर्ग, स्तवन, वन्दना, प्रतिक्रमण और स्वाध्याय-ये छह आवश्यक क्रिया उत्तम-क्षमा आदि वशधर्म। सर्वैः सह क्षमा कार्या दुर्जनः सज्जनैरपि । . . . मृदुत्वं सर्वजीवेषु मार्दवं कृपयान्वितम् ॥ ३७॥ . कपटो न हि कर्तव्यः शत्रुमित्रजनादिषु । दयाहेतुवंचो वाच्यं सत्यरूपं यथार्थकम् ॥ ३८ ॥ देवपूजादिकार्यार्थ विधेयं शौचमुत्तमम् । .. .. . . पञ्चेन्द्रियनिरोधो यो दयाधर्मस्तु संयमः ॥ ३९॥

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