Book Title: Traivarnikachar
Author(s): Pannalal Soni
Publisher: Jain Sahitya Prakashak Samiti

Previous | Next

Page 391
________________ ३५९ सोमसेनभट्टारकविरचित । Wwe मतान्तरम्-दूसरे अन्तराय। विण्मूत्राजिनरक्तमांसमदिरापूयास्थिवान्तीक्षणादस्पृश्यान्त्यजभाषणश्रवणतास्वग्रामदाहेक्षणात् । प्रत्याख्याननिपवणात्परिहरेद्भव्यो व्रती भोजनेऽ प्याहारं मृतजन्तुकेशकलितं जैनागमोक्तक्रमम् ॥ ५६ ॥ विष्टा, मूत्र, चमड़ा, खून, मांस, मदिरा, पीप, हड्डी और वमनके देखनेपर, अद्धृत जातिके मनुष्यकी आवाज सुनलेने पर अपने ग्राममें आग लग जानेपर, त्यक्त वस्तुके खा लेनेपर और भोजनमें मरे हुए प्राणी और केश निकल आनेपर, व्रती पुरुष आहार छोड़ दे-इस तरहकी विधि जैनागममें बताई है ॥ ५६ ॥ अन्यत्-मूलाचारोक्त अन्तराय। कागा मेज्जा छदी रोहण रहिरं च असुपादं च । जण्हू हेठा परिसं जण्हूवरिवदिक्कमो चेव ॥ ५७ ॥ चलते हुए या खड़े हुए पर जो कौआ, बगुला, श्येन आदि जानवर वीठ कर देते हैं उसे काकान्तराय कहते हैं । विष्टा, मूत्र आदि अपवित्र चीजोंका पैरोंसे लिपट जाना अमेध्यान्तराय है ! यदि अपनेको वमन होजाय तो छर्दि नामका अन्तराय है । यदि कोई अपनेको रोक ले तो रोधन नामका अन्तराय है। यदि अपने या परायेके खून दीख पड़े तो रुधिर नामका अन्तराय है । च शब्दसे पीप आदिको भी समझना चाहिए । अपनेको या अपने समीपवती दूसरेको कष्टके मारे आँसू आजांय तो वह अश्रुपात नामका अन्तराय है । जंघाके नीचे स्पर्श होना जान्वषो नामका अन्तराय है। जंघाके ऊपर स्पर्श होना जानुन्यतिक्रम नामका अन्तराय है । तथा-|| ५७ ॥ णाहिअहोणिग्गमणं पञ्चक्खिदसेवणा य जंतुवहो । कागादिपिंडहरणं पाणीदो पिंडपडणं च ॥ ५८ ॥ नाभिके नीचे तक सिर करके यदि गृहस्थके घरके दरवाजेमें होकर घरमें जाना पड़े तो नाभ्यवो-निर्गमन नामका अन्तराय हैं । त्यागकी हुई वस्तु यदि सेवन-खानेमें आजाय तो प्रत्याख्यातसेवन नामका अन्तराय है । अपने या दूसरेके सामने यदि जीववध किया जा रहा हो तो. जीववध नामका अन्तराय है। कौआ आदि जानवर आहारको चौंचसे उठाकर लेजाय तो कागादिपिंडहरण नामका अन्तराय है । भोजन करते हुएके हाथमेंसे यदि पास गिर पड़े तो पिंडपतन नामका अन्तराय है । तथा-॥ ५८ ॥ पाणीये जंतुवहे मंसादिदंसणे य उवसग्गे । ।' पादतरपंचिंदिय संपादो भायणाणं च ॥ ५९ ॥ भोजन करते हुएके हाथमें आकर यदि कोई जीव मर जाय तो पाणिजन्तुवध नामका अन्तराय है । यदि मरे हुए पंचेन्द्रिय जीवका शरीर-मांस आदि देखने में आजाय तो मांसादि दर्शन १" पादतरम्मि जीवो" ऐसा भी पाठ है।

Loading...

Page Navigation
1 ... 389 390 391 392 393 394 395 396 397 398 399 400 401 402 403 404 405 406 407 408 409 410 411 412 413 414 415 416 417 418 419 420 421 422 423 424 425 426 427 428 429 430 431 432 433 434 435 436 437 438