Book Title: Traivarnikachar
Author(s): Pannalal Soni
Publisher: Jain Sahitya Prakashak Samiti

Previous | Next

Page 394
________________ rammarrrrrrrminerannamritainmin ............ त्रैवर्णिकाचार। मुनिको देखकर मक्त पायक भक्तिपूर्वक उन्हें पनगाहे। बाद प्रासुक जलसे उनके चरणोंको प्रक्षालन कर उनकी पूजा करे । भावार्थ-नवधा भक्ति करे ॥ ७२ ॥ :: पट्चत्वारिंशदोपैश्च रहितं मासुकं वरम् । । गृहीयादोजनं गानधारणं तपसेऽपि च ॥७३॥. . उचालीस दोपोंसे रहित प्रासुक और अच्छा आहार, शरीर स्थिति और तपश्चरणके निमित्त प्रहण करे ॥ ७३ ॥ दोषान् संक्षेपतो वक्ष्ये यथाम्नायं गुरोर्मुखात् । । दाता स्वर्ग बजेदोक्ता शिवसौख्याभिलाषुकः ।।७४ ॥ . : गुरुफे मुलगे सुने हुए दोर्पोको संक्षेपमें शास्त्रानुक्ल कहता हूँ। जिन्हें समसकर मोक्षसुखके चाहनेवाल भोक्ता और दाता स्वर्ग और क्रमसे मोक्षको जाते हैं ॥ ५४ ॥ . छयालीस दोपोंके नाम। उद्देशं साधिक पूति मिश्रं माभृतिक पलिम् । ... न्यस्तं पार्दुष्कृत क्रीत मामित्यं परिवर्तनम् ।। ७५ ॥ निपिद्धाभिहितोद्भिन्ना आच्छाग्रं मालरोहणम् । ' धानीभृत्यनिमित्तं च वन्याजीवन में तथा ।। ५६ ॥ क्रोधी लोभः स्तुतिपूर्व स्तुतिपश्चाच्च वैद्यकम् । . . मानं माया तथा विद्या मंत्रंचूर्ण वशीकरम् ।। ७७॥ 'शङ्कापिहितसंक्षिप्त निक्षिप्तस्राविको तथा । परिणतसाधारणदायकलिप्तमिश्रकाः ॥ ७८ ॥ अमारधूमसंयोज्या अममाणास्तथा त्विमे। .. पदचत्वारिंशदोपास्तु वेपणाशुद्धिघातकाः॥ ७९ ॥ .. .. . १ उद्देश, २.साधिक, ३. पूति, ४ मिश्र, ५ प्राभृतिक, ६ वलिं, ७ न्यस्त, '८ प्रादुष्कृत, ९ कोत, १० प्रामित्य, ११ परिवर्तन, १२ निषिद्ध, १३ अभिहित, १४ उद्भिन्न, .१५ आशय, २६ मालारोदण, १७ धात्री, १८ भृत्य, १९ निमित्त,. २० वनीपक, २१ जीवनक, २२ क्रोधः २३ लोभ, २४ पूर्वस्तुति, २५ पश्चात्स्तुति, २६ वैद्यक, २७ मान, २८ माया, २९ विद्या, ३० मंत्र: ३१ चूर्ण, ३२ वशीकरण, ३३ शंका, ३४ पिहित, ३५ संक्षिस, ३६ निक्षिप्त,..३७ साविक, २८ अपरिणत, ३९ साधारण, ४० दायक, ४१. लिप्त, ४२ मिश्रक, ४३ अंगार, ४४ धूम, ४५ संयोज्य और ४६ अममाण ये छयालीस दोष हैं जो एषणाशुद्धिके घातक हैं ॥.७५-७९॥ • औद्दशिक दोष । " नागादिदेवपापण्डिदानाद्यर्थं च यत्कृतम् । . . . अनं तदेव न ग्राह्यं यत उद्देशदोपभाक् ।।८०॥

Loading...

Page Navigation
1 ... 392 393 394 395 396 397 398 399 400 401 402 403 404 405 406 407 408 409 410 411 412 413 414 415 416 417 418 419 420 421 422 423 424 425 426 427 428 429 430 431 432 433 434 435 436 437 438