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## Trivarnikachari: Obstacles to a Jain Monk's Meal
**48.** A monk's meal is obstructed by:
* Abandoning silence due to a blow to the head.
* Falling down on the path.
* Touching meat, impure substances, bones, blood, etc.
* Seeing a dead body.
* Witnessing a village fire.
* Experiencing a great battle.
* Being bitten by a dog while walking.
* Serving food with wet hands after washing them with water.
* Encountering obstacles related to excrement while eating.
**49.** A monk's meal is obstructed by:
* Seeing blood, flesh, skin, bones, hair, excrement, pus, and urine.
* Hearing the sounds of crushing or grinding in the house where they are eating.
* Witnessing vomiting.
* Seeing a lamp being extinguished.
**50.** A monk's meal is obstructed by:
* Being touched by a cat.
* Seeing a naked woman.
* Seeing a dead animal.
* Hearing the voice of an untouchable person.
* Hearing the sound of a funeral drum.
**51.** A monk's meal is obstructed by:
* Hearing a harsh, tearful cry.
* Hearing a dog's bark.
* Dropping the food from the hand.
* Breaking a vow.
* Dropping a vessel.
**52.** A monk's meal is obstructed by:
* A cat or mouse passing between the feet.
* Eating food mixed with bones or other impure substances.
* Eating food with a conscious mind, but without proper awareness.
**53.** A monk's meal is obstructed by:
* Experiencing intense anger or fear.
* Experiencing sexual desire.
* Sitting down due to weakness in the legs.
* Falling down after eating.
* Dropping food from the hand due to a cough.
* Being touched by an untouchable person.
* Thinking "This is meat."
**54.** These are the obstacles to a monk's meal.
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. त्रैवर्णिकाचारी ।
यति-भोजनके अन्तराय। मौनत्यागे शिरस्ताडे मार्गे हि पतितं स्वयम् । मांसामेध्यास्थिरक्तादिसंस्पृष्टे शवदर्शने ॥४८॥ ग्रामदाहे महायुद्धे शुना दष्टे त्विदं पथि । सचित्तोदे करे क्षिसे शङ्कायां मलमूत्रयोः ॥ ४९ ॥ शोणितमांसचर्मास्थिरोमविट्पूयमूत्रके। दलने कुट्टने छर्दिदीपप्रध्वंसदर्शने ।। ५० ॥ ओतौ स्पृष्टे च नमस्त्रीदर्शने मृतजन्तुके। अस्पृश्यस्य ध्वनी मृत्युवाद्ये दुष्टविरोदने ।। ५१ ॥ कशाक्रन्ददुःशब्दे शुनकस्य ध्वनौ श्रुते । हस्तमुक्ते व्रते भग्ने भाजने पतितेऽथवा ॥ ५२ ॥ पादयोश्च गते मध्ये मार्जारम्पकादिके । अस्थ्यादिमलमिश्रान्ने सचित्तवस्तुभोजने ॥५३॥ आर्त द्रादिदुर्ध्याने कामचेष्टोद्भवऽपि च । उपविष्टे पदग्लानात्पतने स्वस्य मूर्छया ॥ ५४॥ हस्ताच्च्युते तथा ग्रासेऽवतिनः स्पर्शने सति ।
इदं मांसेति सङ्कल्पेऽन्तरायाश्च मुनेः परे ॥ ५५॥ मरतकमें किसी तरहका आघात पहुंचनेसे मौन छोड़ देनेपर, आप स्वयं मार्गमें गिर पड़नेपर, मांस, अपवित्र वस्तु, हड्डी, खून आदिका स्पर्श शेजानेपर, मरा मुर्दा देखलेनेपर, ग्रामदाह होनेपर, बड़े भारी युद्धके होनेपर, मार्गमें चलते समय कुत्तेके काट खानेपर, सचित्त पानीसे हाथ धोकर भोजन परोसनेपर, आहारग्रहण करते समय मलमूत्रकी बाधा आ उपस्थित होनेपर, रक्त, मांस, चमड़ा, हट्टी, पाल, विष्टा, पीप और मूत्रके देखनेपर, जिस घरमें भोजन कर रहे हों वहां पर दलने और कूटनेकी आवाज आनेपर, वमन देखनेपर, दीपकको बुझता हुआ देखनेपर, बिल्लीका स्पर्श होजानेपर, नंगी स्त्रीके देखनेपर, मरे हुए प्राणीके देखनेपर, अस्पर्य जातिके प्राणीकी आवाज सुन लेनेपर, मरे मुदके बाजे बजनेकी आवाज आनेपर, बुरी तरहसे रोनेकी आवाज आनेपर, अत्यंत कठोर अश्रुपूर्ण रुदनकी आवाज आनेपर, कुत्तेकी चिल्लाहट सुननेपर, हाथकी अंजलीके 'छूट जाने पर, प्रतभंग हो जानेपर,पात्रके गिर पड़नेपर, पैरोंके वीचमें होकर बिल्ली चूहे आदिक्के निकल जाने पर, हडी आदि अपवित्र वस्तुओंसे मिला हुआ भोजन होनेपर, सचित्त-अप्राशुक वस्तुके खा लेनेपर, आत-ध्यान रौद्र-ध्यान आदिके हो जानेपर, कामचेष्टाके उत्पन्न हो जानेपर, पैरोंमें कमजोरी
होने के कारण बैठ जानेपर. मी खाकर गिरपड़नेपर, हायसे ग्रास गिर पड़नेपर, अनती मनुष्यका '. स्पर्श होनेपर और यह मांस है इस तरहकी कल्पना होजानेपर मुनिके भोजनमें अन्तराय हो जाते
हैं। भावार्थ-ये मुनिके भोजनके अन्तराय हैं ॥ ४६.५५ ॥ . .