Book Title: Traivarnikachar
Author(s): Pannalal Soni
Publisher: Jain Sahitya Prakashak Samiti

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Page 383
________________ - सोमसेनभट्टारकविरचित mwww.. ' बारहवां अध्याय । . .. ... .. ..xecxocm अर्थ नत्वा क्रियावन्तं कर्मातीतं जिनेश्वरमं । . क्रियाविशेषमेतहि वच्म्यहं शास्त्रतोऽर्थतः ॥१॥ इसके अनन्तर कर्भ रहित और क्रियावान जिनदेवको नमस्कार कर, शास्त्र के अनुसार सार्थक वर्णलाभ आदि क्रियाएं कही जाती हैं ॥१॥ यस्य वर्णः सुवर्णाभी वर्णा येन विवर्णिताः । सकुन्थुनाथनामा च सार्वभौमस्थितोऽच्यते ॥ २॥ जिसके शरीरका वर्ण सुवर्ण जैसा पीला है और जिसने ब्राह्मण आदि चार वर्णीका वर्णन किया है तथा जो छह खंडका स्वामी रह चुका है उस कुन्थुनाथ नामके तीर्थकरका स्तवन किया जाता है ॥ २॥ वर्णलाभ क्रिया। इत्थं विवाहमुचित समुपाश्रितस्य गार्हस्थ्यमेकमनुतिष्ठत एव पुंसः। स्वीयस्य धर्मगुणसंघविद्धयेऽहं वक्ष्ये विधानत इतो भुवि वर्णलाभम् ॥३॥ ऊपर कहे अनुसार जिसने योग्य विवाह-विधि की है और जो. गृहस्थ सम्बन्धी आचरणोंका पालन करता है उस गृहस्थके धर्म, गुण और संघकी वृद्धि के निमित्त अब विधिपूर्वक जगतमें विख्यात वर्ण-लाभ क्रिया कही जाती है ॥ ३ ॥ स ऊढमार्योऽप्यकथीह तावत्पुमान् पितुः सद्मनि चास्वतन्त्रः। गार्हस्थ्यसिद्ध्यर्थमतो ह्यमुष्य विधीयते सम्पत्ति वर्णकाभः ॥ ४ ॥ यद्यपि वह योग्य कन्याके साथ विवाह कर चुका है तो भी तबतक वह परतंत्र है जबतक कि अपने पिताके घरमें निवास करता है। इसलिए इसके गृहस्थ-धर्मकी सिद्धिके लिए वर्णलाभ नामकी क्रिया कही गई है ॥ ४ ॥ वर्णलाभ क्रियाका स्वरूप। अनुज्ञया द्रव्यभृतः पितुः प्रमोः सुखं परिमाप्तधनान्नसम्पदः । पृथक्कृतस्यात्र गृहस्य वर्तनं स्वशक्तिभाजोऽकथि वर्णलाभकः ॥५॥ घर-सम्पत्तिके स्वामी अपने पूज्य पिताकी आज्ञाके अनुसार जिसने सुखपूर्वक धन-धान्य सम्पत्ति प्राप्त की है, जो पिताकी आज्ञासे ही जुदा हुआ है और स्वयं सब कार्योंके करनेमें समर्थ हो गया है ऐसे पुरुषके गृहस्थधर्मके आचरणका नाम वर्णलाभ कहा गया है। भावार्थ---पिताकी आशापूर्वक उससे जुदा होकर गृहस्थधर्मका पालन करना वर्णलाभ क्रिया है ॥ ५ ॥ विधाय सिद्धमतिमार्चनं च क्रमेण कृत्वा परमानुपासकान् । पितास्य पुत्रस्य धनं समर्पयेबर्द्धि साक्षीकृतमुख्यसज्जनः॥६॥ ..

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