Book Title: Traivarnikachar
Author(s): Pannalal Soni
Publisher: Jain Sahitya Prakashak Samiti

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Page 375
________________ wwwwww. सोमसेनभट्टारकविरचित- .. विवाहे दम्पती स्यातां त्रिरात्रं ब्रह्मचारिणौ। : अलंकृता वधूश्चैव सहशय्यासनाशिनौ ॥ १७२॥ विवाह हो जाने के बाद वे दंपती तीन दिनतक ब्रह्मचारी रहे-संभोगादि क्रिया न करें। अनंतर साथ सोवें, साथ बैठे और साथ भोजन करें। श्लोकके उत्तरार्धका पाठ ऐसा भी है: __ अधः शय्यासनौ स्यातामक्षारलवणासिनौ । अर्थात्-भूमिपर ही सोवें और भूमिपर ही बैठे।क्षार और लवणसे रहित भोजन करें ॥१७२॥ वध्वा सहैव कुर्वीत निवासं श्वशुरालये ।। चतुर्थदिनमत्रैव केचिदेवं वदन्ति हि ॥ १७३ ॥ कोई कोई आचार्य ऐसा कहते हैं कि वर, वैचूके साथ साथ चौथे दिन भी सुसरालमें ही निवास करे ॥ १७३ ॥ आगे " अथ परमतम्मृतिवचनं " ऐसा लिखकर ग्रन्थकार परमतकी स्मृतिके वाक्य उद्धृत करते हैं। चतुर्थीमध्ये ज्ञायन्ते दोषा यदि वरस्य चेत् । । दत्तामपि पुनर्दधात्पिताऽन्यस्मै विदुर्बुधाः ॥ १७४ ॥ पाणि-पीड़न नामकी चौथी क्रिया अथवा सप्तपदीसे पहले वरमें जातिव्युतरूप, हनजातिरूप या दुराचरणरूप दोष , मालूम हो जाय तो वाग्दानमें दी हुई भी कन्याको उसका पिता किसी दूसरे श्रेष्ठ जाति आदि गुणयुक्त वरको देवे, ऐसा बुद्धिमानोंका मत है। सो ही याज्ञवल्क्य स्मृतिमें कहा है दत्तामपि होत्पूर्वाच्छ्रेयांश्चेद्वर आव्रजेत् ।। मिताक्षराटीका-यदि पूर्वस्मात् वरात् श्रेयान् विद्याभिजनाधतिशययुक्तो वर आग- , च्छति, पूर्वस्य च पातकयोगो दुवृत्तत्वं वा तदा दत्तामपि हरेत्। एतच्च सप्तपदात्याग्दृष्टव्यं । __इसका आशय यह है कि यदि पहले वरसे, जिसके साथ वाग्दान किया गया हो-विद्या, श्रेष्ठ- . कुल-जाति आदि गुणोंसे युक्त दूसरा वर मिल जाय और पहले वरमें जातिच्युत या दुराचरण-रूप दोष हो तो वाग्दानमें-दी हुई भी कन्याको पहले वरको न देवे । यह नियम सप्तपदीक पहले समझना। "दत्ता' 'दत्वा' आदि शब्दोंका अर्थ इस प्रकरणमें टीकाकारोंने वाग्दाने दत्ता. या वाचादत्ता किया है । यथा दत्वा कन्या हरन दंड्यो व्ययं दद्याच सोदयं । . टीका-कन्यां वाचा दत्वापहरन् द्रव्यानुबंधाधनुसारेण राज्ञा दंडनीयः । एतच्च अपहारकारणाभावे । सति तु कारणे दत्तामपि हरेत् कन्यां श्रेयांश्चेद्वर आव्रजेत्' इत्यपहारभ्यनुज्ञानान दंड्यः । यच्च वाग्दाननिमित्रं वरेण स्वसंबंधिनां वोपचाराथै धनं व्ययीकृतं तत्सवै सोदयं सवृद्धिक कन्यादाता वराय दद्यात् । भावार्थ--कन्याका पिता कन्याका वाग्दान करके विना ही कारण उस परके साथ अपनी कन्याका. व्याह न करे तो. राजा उसके पिताको उसकी योग्यतानुसार दंड दे । परंतु ' दत्तामपि हरेत् । इत्यादि लोकके अनुसार न देनेका कारण उपस्थित हो तो दंड न दे । तथा वरका वाग्दानके .

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