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त्रैवर्णिकांचार ।
समित्समारोपणपूर्वकं तथा, हुताशपूजावसरार्चनं मुदा । गृहीतवी च वरो वधूयुतो, विलोकनार्ह स्वपुरं व्रजेत्प्रभोः ॥ १६७ ॥ ततः शेषहोमं कृत्वा पूर्णाहुतिं कुर्यात् ।
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ॐ रत्नत्रयार्चनमयोत्तमहोमभूति, युष्माकमावहतु पावनदिव्यभूर्तिम् । पखण्डभूमि विजयप्रभवां विभूर्ति, त्रैलोक्यराज्यविषयां परमां विभूतिम् ॥ १६८ ॥ . इति भस्मप्रदानमन्त्रः ।
समिधा में अनिकी स्थापना करके उसकी पूजा करे । अनन्तर वर सबका यथायोग्य सत्कार कर और स्वयं पान-बीड़ा लेकर वधूके साथ साथ अपने नगरको जावे ।
मालाबंधनादिकके अनन्तर होमकी शेष विधिको पूर्ण कर पूर्णाहुति देवे और " ॐ रत्नयार्चनमयोत्तम " इत्यादि मंत्र - श्लोक पढ़कर भस्म प्रदान करे । इस तरह यह भस्मप्रदानमंत्र है । इस मंत्र का भाव यह है कि यह रत्नत्रयकी पूजामयी उत्तम होमकी विभूति ( भस्म ) तुम्हें पवित्र और दिव्य विभूति देवे, षट्खंडके विजयकी संपत्ति देवे और तीन लोकके राज्यकी उत्कृष्ट अनन्तचतुष्टय स्वरूप लक्ष्मी देवे ॥ १६७-१६८ ॥
सुवर्णप्रदानमंत्र |
हिरण्यगर्भस्य हिरण्यतेजसो, हिरण्यवत्सर्वसुखावहस्य 1.
प्रसादतस्तेऽस्तु हिरण्यगर्भता, हिरण्यदानेन सुखी भव त्वम् ॥ १६९ ॥ सुवर्णविश्राणनमेव चाद्य, सुवर्णलाभं च हिरण्यकान्तिम् ।
स्वर्णार्थसौख्यं परिणायमेत, -द्वधूवराभ्यां नियतं ददातु ॥ १७० ॥ . हिरण्यविश्राणनमेव चाद्य, हिरण्यलाभं च हिरण्यकान्तिम् । हिरण्यगर्भोपमपुत्रजातं वधूवराभ्यां नियतं ददातु ।। १७१ ॥ इतिस्वर्णदानमन्त्रः ।
हिरण्यगर्भ, हिरण्यकान्ति और हिरण्यके समान सर्व सुखके धारक जिनेन्द्रके प्रसादसे तुम हिरण्यगर्भ होओ और हिरण्यका दान देकर सुखी होओ। आजके इस सुवर्णदानसे वधू और वरको सुवर्णका लाभ हो, उनकी सुवर्णकीसी कान्ति हो और उनको सुखकी प्राप्ति हो । आजका यह सुवर्णदान वधू और वरको हिरण्यलाभ हिरण्यकान्ति और हिरण्यगर्भ के सदृश पुत्र प्रदान करे । इस मंत्रको पढ़कर स्वर्णदान दे । यह स्वर्णदान करनेका मंत्र है ॥ १६९-१७१ ॥
तदनन्तरं कंकणमोचनं कृत्वा महाशोभया ग्रामं मदक्षिणीकृत्य पयःपाननिधुवनादिकं सुखेन कुर्यात् । स्वग्रामं गच्छेत् ।
अन्तर कंकण-मोचन करके भारी विभूतिके साथ ग्रामकी प्रदक्षिणा देकर अपने ग्रामको जावे। वहां दुग्धपान, भोजन, संभोगादि क्रियाएं करें ।
यहांतकं विवाहविधि प्रायः पूर्ण हो चुकी । आगे ग्रन्थकार " अथ विशेषः " ऐसा लिखकर परमतके अनुसार उस विषयका कथन करते हैं जिसका जनमतके साथ कोई विरोध नहीं है और प्रायः सर्वसाधारण है । यथा-