Book Title: Traivarnikachar
Author(s): Pannalal Soni
Publisher: Jain Sahitya Prakashak Samiti

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Page 367
________________ सोमलेनभट्टारकांवरचितनूतनौदुम्बरे पीठे धौतवस्त्रप्रसारिते.. . . . . . . वामदक्षिणयोः प्रत्यक् माङ्मुखौ' तौ सुदम्पती. ॥ १२९ ।।। उपाध्यायस्ततः कुर्याद्धोमं सन्मन्त्रपूर्वकम् । . . महावाधनिनादेन मङ्गलाष्टकपाठतः ॥ १३० ।। कन्याया दक्षिणं पाणिं सांगुष्ठं सव्यपाणिना। .: गृहीत्वा चाय वामस्थां कृत्वाऽन्नाहुती नेत् ।। १३१. ॥ . . पुरस्ताद्वरवध्वोश्च स्थापनां कुरु पत्रिकी (?)। . . . । ततश्च होमकुण्डाग्रे सङ्कल्पः मरिणोच्यते ॥ १३२ ॥ - वधू और वरका वस्त्र बांधे-गठजोड़ा जोड़े। वे दोनों जलसे भरे दो कलश देखें । होमकुं. उकी पश्चिम दिशामें नवीन उदंबर वृक्षकी लकड़ीका बैठनेके लिये एक पीठ-पहा विछावे । उसपर धोया हुआ साफ वस्त्र विछावे.। उस पर आकर वधू और वर वैठे। वाई और वर मोर दाहिनी ओर वधू बैठे। दोनों. पूर्व दिशाकी तरफ मुख करें । अनन्तर उपाध्याय मंत्रोच्चारणपूर्वक होम करे । उस समय बाजे बजवावें और मंगलाष्टक पढ़ें । अनंतर अंगूठे सहित कन्याका दाहिना हाथ वायें हाथसे पकड़कर उगे बाई तरफ लेवे और अन्नकी आहूति देवे। अनन्तर वर वधूके आगे अंकुरपान (जिसमें अंकुरारोपण किया गया है) की स्थापना करे । अनंतर होमकुडके सामने उपाध्याय संकल्प पढ़े ॥ १२८-१३२ ॥ . . . . . . . . . . . .: . . . . . . पूर्वोक्त विधिका क्रम। . . . . . .. ' पुण्याहवाचनां पश्चात्पञ्चमण्डलपूजनम् । नवानां देवतानां च पूजनं च यथाविधि ॥ १३३ ।। तथैवाघोरमन्त्रेण होमश्च समिधाहुतिम् । . . ___.. लाजाहुति वधूहस्तद्वयेन च वरेण च ॥ १३४॥ .... . . . "वरस्य वामपा तु कन्याया उपवेशनम् । '' शिला स्थाप्या तयोरग्रे मण्डले लोष्टसंयुता ॥ १३५ ॥ . . __ . . : शिला स्थापिताः सप्त पुजा अक्षतसम्भवाः। . । एतेषां पुरतोऽत्यर्थ दम्पत्योः स्थापनं मतम् ।। १३६ ॥ . . ततो दक्षिणपादस्य योज्गुष्ठो यावरञ्जितः। ....' गृहीतव्यो वरेणैव सप्तकृत्वो मुहुर्मुदा ॥ १३७ ॥. . स्थानानां परमाणां च सप्तानां गुणवत्ताया। . .. . सङ्कल्पेन क्रमेणैव स्पष्टव्याः सप्तपुञ्जकाः॥१३८ ॥ १ श्लोकौ ' प्रत्यक्प्राङ्मुखौ ' पाठ है, जिसका अर्थ पश्चिम दिशा और पूर्व दिशाका ओर । मुख कदे, होता है। .. .. .. ... .. . .. ... . .

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