Book Title: Traivarnikachar
Author(s): Pannalal Soni
Publisher: Jain Sahitya Prakashak Samiti

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Page 365
________________ ३२६ सोमसेनभट्टारकविरचित. ....................... ..... "ॐ एकेन " इत्यादि मंत्रको वरपक्षके लोग तीन वार बोलें । उसके बदलेमें कन्यापक्षके लोग 'वृणीध्वं वृणीध्वं वृणीध्वं ' इस तरह तीन वार कहें । ततः-ॐ एकेन भकाशेन पूर्वेण पुरुषेण काश्यपेन ऋपिणा प्रतीते काश्यपगोत्र प्रजातां तस्य प्रपौत्रीं तस्य पौत्रीं तस्य पुत्री देवदत्तानामधेयां इमां कन्यां वृणीध्वं इति कन्यासम्बन्धिभित्रिवक्तव्यम्। तदा वरसम्बन्धिभिवृणीमहे इति प्रतिवक्तव्यम् । इति कन्यावर मंत्रः। ___ इसके बाद 'ॐ एकेन प्रकाश्येन' इत्यादि मंत्रको कन्या-पक्षके लोग तीन वार उच्चारण करें । इसके उत्तरमें वरपक्षके मनुष्य 'वृणीमहे वृणीमहे वृणीमहे इसतरह तीन वार बोले । कन्यादान मंत्र । ततश्च कन्यापिता-ॐ नमोऽहते भगवते श्रीमते वर्द्धमानाय श्रीवलायुरारोग्यसन्तानाभिवर्धनं भवतु । इमां कन्यामस्मै कुमाराय ददामि इवी इत्रीं श्वी है सः स्वाहा । इत्यनेन गन्धोदकधारापूर्वकं कन्यादानं कुर्यात् । इसके बाद कन्याका पिता 'ॐ नमोऽईते ' इत्यादि मंत्र पढ़कर गन्धोदककी धार छोड़ता हुआ कन्या प्रदान करे। ___ अथ कंकणम्-कंकण-बंध । त्रिविरावेष्टितं सूत्रं नाभिदन्नेऽनयोः पृथक् । ऊर्ध्वं चाधः समादाय कृत्वा पञ्चगुणं ततः ।। १२२ ॥ हरिद्राकल्कमालिप्य वलित्वा तत्करेऽर्पयेत् । मदनफळमन्यं वा मणिं सर्वेण योजयेत् ।। १२३ ॥ वाद्यैर्पन्त्रैः समायुक्तं सौवर्ण राजतं पिता। ताभ्यां तो कंकणं हस्ते वध्नीयातां मिथः क्रमात् ।। १२४ ।। वधू और वरके नाभिप्रदेशके पास दोनोंके चारों ओर सतके तीन तीन घागेके दो फेर करे। नीचेकी तीन धागेकी लरका फेर ऊपरको और ऊपरकी तीन धागेकी लरका फेर नीचेको करे। जो फेर नीचेकी ओर करे उसे पैरोंमें होकर और जो उपरकी ओर करे उसे मस्तकपर होकर निकाल ले पश्चात् उसे पचंगुणा करे । उसे हल्दीमें रंगकर और वटकर तथा उसमें मदनफल या सोने चांदीकी मुद्रिका बांधकर वधू-वरके हाथमें सौंप देवे । वाद मंत्रोच्चारण पूर्वक गाजे. वाजेसहित वधू वरके हायमें और वर वधूके हाथमें क्रमसे उस कंकणको बांध ॥ १२२-१२४ ॥ ___ अथ मन्त्रः-कंकण-बंधन मंत्र। - ॐ जायापत्योरेतयोर्गृहीतपाण्योरेतस्मात्परमा चतुर्थदिवसादाहोस्विदासप्तमादिज्यापरमस्य पुरुषस्य गुरुणामुपास्तिर्देवतानामथेनाऽग्निहोत्रं सत्कारोऽभ्यागतानां . ____१ पचगुणीकी हुई एक एक लरमें सूलके धागे छह होते हैं; एवं पांच लरोंमें तीस धागे हो जाते हैं।

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