________________
३०८
JAMMwww
rawu400r.
womarwww
सोमसेनभट्टारकविरचित.:. . ग्यारहवाँ अध्याय।
बन्दे त्वां जिनवर्द्धमानमनघं धर्मगुसद्धीजक . . . कर्मारातितमोदिवाकरसमं नानागुणालंकृतम् ।
स्याद्वादोदयपर्वताश्रिततरं सामन्तभद्रं वचः - -पायानः शिवकोटिराजमहितं न्यायैकपात्रं सदा ॥१॥
धर्म-वृक्षके बीजभूत, कर्म-शत्रुरूप अगाढ़ अन्धकारको नाश करनेके लिए सूर्यके समान, अनेक गुणोंसे अलंकृत और अघाति-मलरहित श्रीवर्धमान परमात्माको में नमस्कार करता हूँ। तथा जो स्याद्वादरूपी उदयाचलपर आरूढ़, शिवकोटि महाराजके द्वारा पूज्यपनेको प्राप्त हुए और न्यायका एक अद्भुत पात्र · श्रीसमन्तभद्रके वचन सदा हमारी रक्षा करें ॥ १ ॥ ..
जिनसेनमुनि नत्वा वैवाहविधिमुत्सवम् ।
वक्ष्ये पुराणमार्गेण लौकिकाचारसिद्धये ॥२॥ मैं भीजिनसेनस्वामीको नमस्कार कर, लौकिक आचरणकी प्राप्तिके लिए, पुराणके अनुसार विवाहविधि नामके महोत्सवका कथन करता हूं ॥ २ ॥
विगह करनेके योग्य कन्या। अन्यगोत्रभवां कन्यामनातङ्क सुलक्षणाम् ।
आयुष्मती गुणाढ्यां च पितृदत्तां वरेद्वरः ॥ ३॥ जो अन्य गोत्रको हो-अपने गोत्रको न हो, किन्तु सजाति हो; रोगरहित हो,उत्तम लक्षणों वाली हो, दोर्घ आयुवाली हो, विद्या, शील आदि गुणोंसे भरी-पूरी हो और अपने पिताद्वारा दी हुई हो, ऐसी कन्याके साथ 'वर' विवाह करे ॥ ३ ॥
वरका लक्षण। वरोऽपि गुणवान् श्रेष्ठो दीर्घायुाधिवर्जितः।
मुकुली तु सदाचारो गृह्यतेऽसौ सुरूपकः ॥४॥ वर भी गुणवान्, श्रेष्ठ, दीर्घ आयुवाला, नीरोग, उत्तम कुलका, सदाचारी और रूपवान होना चाहिए ॥ ४ ॥
. .. .. . . वरके गुण | . सत्यं शौचं क्षमा त्यागः प्रज्ञौजः करुणा दमः। .
प्रशमा विनयश्चति गुणाः सत्त्वानुषङ्गिणः ॥ ५.॥ . . . . सत्य, शौच (निलोभता), क्षमा, त्याग, विद्वत्ता, तेज, दयालुता, इंद्रिय-निग्रह, प्रथम और विनय, ये प्राणियोंमें रहनेवाले गुण हैं। इनका भी वरमें होना आवश्यकीय है ॥५॥