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सोमसेनभट्टारकविरचित
. जो दीक्षा धारण किये बिना ही व्रतोंमें आसक्त होकर शास्त्रोंका अध्ययन करनेमें तत्पर है, और शास्त्र पढ़ चुकनेके बाद विवाह-संस्कार करता है वह अदीक्षा ब्रह्मचारी है ।। १३२ ॥ . .
गूढ़ ब्रह्मचारीका लक्षण । आ वाल्याच्छास्त्रसलीतः पित्रादीनां हठात्पुनः।
पठित्वोद्वाहं यः कुर्यात्स गूढब्रह्मचारिकः॥ १३३ ॥ . जो बालकपनसे ही शास्त्रों में प्रीति करता है-शास्त्र का अध्ययन करता है और अध्ययन कर चुकनेके बाद पिता आदिके हठसे मजबूर होकर विवाह करता है वह गूढ़ ब्रह्मचारी है ॥१३३॥..
नैष्टिक ब्रह्मचारीका लक्षण। यावजीवं तु सर्वस्त्रीसङ्गं करोति नो कदा। .
नैष्ठिको ब्रह्मचारी स एकवस्त्रपरिग्रहः ॥ १३४ ॥ जो जन्मसे लेकर जीवनपर्यन्त कभी भी स्त्री संग नहीं करता है वह एक वस्त्र पहनकर जन्म वितानेवाला नैष्ठिक ब्रह्मचारी है। भावार्थ-नैष्ठिक ब्रह्मचारीके सिवा बाकीके ब्रह्मचारी जो जो अवस्थाएँ उनके लिए बताई गई हैं उन उन अवस्थाओंमें रहकर शास्त्राध्ययन कर चुकनेके बाद विवाह-संस्कार कर लेते हैं, किन्तु नैष्ठिक ब्रह्मचारी विवाह नहीं करता । यही इन सोंमें क्रियाभेद है। इसी क्रिया-भेदके कारणसे इनमें भेद है ॥ १३४ ॥
गृहस्थका स्वरूप । । सन्ध्याध्ययनपूजादिकर्मसु तत्परो महान् ।
त्यागी भोगी दयालुश्च सद्गृहस्थः प्रकीर्तितः ॥ १३५ ॥ जो सन्ध्या, शास्त्रस्वाध्याय, पूजा आदि छह कोंमें तत्पर है, अनिष्ट वस्तुओंका त्यागी है, दृष्ट वस्तुओंका भोगी है और प्राणियोंपर दया करता है वह उत्तम गृहस्थ कहा गया है ॥१३५॥
वानप्रस्थका लक्षण । प्रतिमैकादशधारी ध्यानाध्ययनतत्परः ।।
पाक्षायाद्विदूरस्थो वानप्रस्थः प्रशस्यते ॥ १३६ ॥ जो ग्यारहवीं प्रतिमाका धारी है, ध्यान-अध्ययनमें तत्पर है, और क्रोधादि कषायोंसे अत्यन्त दूर है-कषायभाव नहीं करता है, मंद कषायी है, वह वानप्रस्थ प्रशंसनीय है || १३६ ॥
. मिक्षुका स्वरूप । सर्वसङ्गपरित्यक्तो धर्मध्यानपरायणः ।
ध्यानी मौनी तपोनिष्ठः स ज्ञानी भिक्षुरुच्यते ॥ १३७॥ जो बाह्य और आभ्यंतर परिग्रहका त्यागी है, धर्म-ध्यानमें लीन रहता है, मौनव्रत रखता है। तपमें निष्ठ है वह ज्ञानी, भिक्षु-मुनि है ।। १३७ ।।
. : आरंभत्याग प्रतिमा। .: .. सेवाकृषिवाणिज्यप्रमुखारम्भतो.व्युपरविः ।. . . ... ... माणातिपातहतोर्याऽसावारम्भविनिहात्तिः ॥ १३८॥ ...