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सोमसेनभट्टारकविरचितजो कच्चे मूल, फल, शाक, शाखा, करीर (बांसकी कौंपल वा कर अर्थात् कैर वृक्षका फल), कन्द, पुष्प और बीज नहीं खाता है वह दया-मूर्ति इंद्रियोंकी लंपटता-रहित पुरुष, सचित्तत्याग प्रतिमाधारी है ॥ १२१॥
सचित्तत्यागीकी प्रशंसा। येन सचित्रं त्यक्तं दुर्जयजिव्हाऽपि निर्जिता तेन ।
जीवदया तेन कृता जिनवचनं पालितं तेन ॥ १२२ ॥ जिसने सचित्तका त्याग कर दिया, समझ लो कि, उसने अपनी दुजय जिहाको भी जीत लिया, जीवदयाका पालन कर लिया और जिन-वचनोंका भी परिपूर्ण पालन कर लिया ॥ १२२ ॥
। प्रासुक द्रव्यका लक्षण । ' तत्तं मुक्त पक्कं अंबिललवणेन मीसियं दव्वं ।
जे जेतेण य छिण्णं तं दव्वं फासुयं भणियं ।। १२३ ।। जो अमिसे तपाया गया हो, सूर्यकी धूप आदिसे सुखाया गया हो, पका हुआ हो, खटाई-नमक मिला हुआ हो, चाकू आदिसे छिन्न भिन्न किया गया हो वह सब द्रव्य प्रासुक--जीवरहित है।।१२३॥
रात्रि-भुक्ति-त्याग प्रतिमा। . अन्नं पानं खाद्य लेह्यं नानाति यो विभावयोम् ।
स च रात्रिभुक्तिविरतः सत्त्वेष्वनुकम्पमानमनाः ॥ १२४॥ जो रातमें अन्न, पान, खाद्य और लेह्य, इन चार प्रकारके आहारोंको नहीं करता है वह जीवोंपर दयालु-चित्त रात्रि-भोजन-त्याग नामकी प्रतिमाका धारी है। ॥ १२४ ॥ ___भावार्थ-मूलांचार आदिमें अन्न, पान, खाद्य और स्वाद्य, ये आहारके चार भेद कहे हैं । अतः स्वाद्यमें लेह्यको या लेह्यमें स्वाद्यको अन्तर्भाव कर लेना चाहिए। इन चारोंका लक्षण यह है । दाल, भात, रोटोको अन्न-अशन कहते हैं। दूध, जल आदिको पेय या पान कहते हैं। पूर्व, पूरी, कचोरी, लड्डु आदिको खाद्य कहते हैं। तथा पान, सुपारी, इलायची, अनार, संतरे आदिको स्वाद्य कहते हैं। जैसे:
मौद्गौदनाद्यमशनं क्षीरजलाई मतं जिनैः पयं । .. ताम्बूलदाडिमा स्वायं खाद्यं त्वपूपाधं ॥
रात्रिभोजन-त्यागीकी प्रशंसा । यो निशि भुक्तिं मुञ्चति तेनानशनं कृतं च षण्मासम् ।
संवत्सरस्य मध्ये निर्दिष्टं मुनिवरेणेति ॥ १२५ ॥ जो पुरुष रातमें नहीं खाता है, समझो कि, उसने सालभरमें छह माह उपवास किये, ऐसा मनि लोग कहते हैं ॥ १२५ ॥
रात्रिभुक्त व्रतका दूसरा स्वरूप । मणवयणकायकदिकारिदाणुमोदेहि मेहुणं णवधा । दिवमम्मि जो विवज्जदि गुणम्मिःसावओ छहो ॥ १२६ ॥