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त्रैवर्णिकांचार। · विजातीयानां गेहे तु भुक्ते चोपोषणं नव ।
.एकमुक्ताश्च पञ्चाशवाभिपेकाः समाः ।। ८६॥ विजातीय लोगाके घरपर भोजन कर लिया हो तो नौ उपवास, पचास एकाशन और इतने ही अभिषेक करे ।। ८६ ॥
मृतेऽनौ पातके मोक्ताः प्रोपधाः पञ्चविंशतिः।
एकमुक्त्यन्नदानाभिषेकपुष्पशतत्रयम् ॥ ८७ ॥ अमिमें जलकर मरजाने वालेके शरीर-संस्कार करने वालेकी शुद्धि, पच्चीस उपवास करने, तीन सौ एकाशन करने, तीन सौ अन्नदान देने, तीन सौ बार जल-स्नान करने और तीन सौ पुष्प देनेसे होती है ॥ ८ ॥
गिरेः पातोऽहिदष्टश्च गजादिपतनान्मृतः। भोपधाः पञ्च पकानयात्राभिपंकविंशतिः ॥ ८॥ तीर्थयात्राञ्च गोदानं गन्धपुष्पाक्षतादयः।
यथाशक्ति गुरोः पूजा द्रव्यदानं जिनालये ॥ ८९॥ पर्वतपरसे गिरनेसे, सांपके डस लेनेसे, हाथी वगैरह परसे गिरनेसे यदि कोई मरगया हो, तो उसके शरीरका संस्कार करने वालेकी शुद्धि पांच प्रोषधोपवास करनेसे, बीस सत्पात्रोंको दान करनेसे, पीठ पार जलस्नान करनेसे, तीर्थयात्रा करनेसे और अपनी शक्ति-अनुसार जिन-मंदिरमें द्रव्य देनेसे होती हे॥ ८८-८९ ।।
प्रायश्चित्तेषु सर्वेषु शिरोमुण्डं विधीयते । काश्मीरागुरुपुष्पादिद्रव्यदानं स्वशक्तितः ॥ ९० ॥ ग्रहपूजा यथायोग्यं विमेभ्यो दानमुत्तमम् ।
संघपूजा गृहस्येभ्यो खन्नदानं प्रकीर्तितम् ॥ ९१॥ सब तरहके प्रायश्चित्तॊमें शिरका मुंडन करावे, अपनी शक्ति अनुसार केशर, अगुरु, पुष्पअक्षत आदि द्रव्योंका दान करे, जो ग्रह जैसे हो उनका उन्हींके योग्य सत्कार करे, ब्राह्मणों को दान दे, संघकी पूजा करे और गृहस्थोंको भोजन करावे ।। ९०-९१ ॥
चाण्डालादिकसंसर्ग कुर्वन्ति वनितादिकाः। पञ्चाशत्लोपधश्चैकभक्तः पञ्चशतानि च ।। ९२ ॥ मुपादानं यात्राश्च पञ्चाशत्पुष्पचन्दनम् । .
संघपूजा च जापं च द्रव्यदानं जिनालये ॥ ९३ ॥ . यदि भावकोंकी स्त्री वगैरहका चांडालादिसे स्पर्श होगया हो तो वे पचास प्रोषधोपवास, और पांचौ एकाशन करें, सुपाओंको दान दें, तीर्थयात्रा करें, पचास पुष्प-पंदन देवें, चारों संघकी पूजा करें, जाप जपें और जिनालयमें द्रव्य देवें ॥ ९२-९३ ॥
मालीकादिकसंसर्ग कुर्वन्ति वनितादयः। . मोषधाः पञ्च चैकामदश पात्राणि विंशतिः ॥९४॥ . ..