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सोमसेनभट्टारकविरचित
मांग पड़नेके साधन हैं। फलोंवाली छोटी छोटी दो टहनियां (डालियां ) और तीन दर्भ से युक्त घृतमें भिंजोई हुई खदिरवृक्ष (खैर) की सलाईस मांग पाड़े । अथवा शमीक्षकी समिधा (लकड़ी) से मांग पाड़े । उस समिधाका अग्रभाग मुकुलितं होना चाहिए, तथा वह ही परों के समान तीन जगह सफेद होना चाहिए, जिस वस्तुने मांग पाड़े उसके अप्रभाग में तेलसे गीला किया हुआ सिन्दूर लगा ले | इस तरह मांग पाड़ चुकने के बाद उसका पति उसके पेट और सिरपर उदुंबर ( गूलर ) का क्षेपण करें। आचार्य उदुंबर के फलों की माला बनाकर उस गर्भिणीके गलेमें पहनावे । शिष्टाचार आदि सम्पूर्ण कार्य पहले की तरह किये जांव ॥ ७६-७९ ॥ पुण्याहवाचनैराचार्यो गर्भिणी सिधयेत् ।
अर्थात् पुण्याहवाचनके द्वारा आचार्य गर्भिणीका अभिषेक करे ।
मंत्र — ॐ ह्रीं श्रीं ह्रीं क्रीं अ सि जा उसा उदुम्बरकृतचूर्ण समस्ते जठरे चेयं वीं क्ष्वीं स्वाहा ।
अनेनोदरं वा मस्तकं वा उदुम्बरचूर्णेन सेचयेत् ।
अर्थात् इस मंत्र के द्वारा पेटपर अथवा मस्तकपर उदुंबर चूर्णते अभिषेचन करे । मंत्र-ॐ नमोऽर्हते भगवते उदुम्बरफलाभरणेन बहुपुत्रा भवितुमही स्वाहा । अनेनोदुम्बरफलमालां कण्ठे दिषेत पुरुषः ।
अर्थात् इस मंत्रको पढ़कर उदुंबर फलों की माला उसके गले में पहनावे | विशेष | गर्भाधानं प्रमोद सीमन्तः पुंसदं तथा ।
ran मासि चैत्र कुर्यात्सर्वं तु निर्धनः ॥ ८० ॥ अन्नप्राशनपर्यन्ता गर्भाधानादिकाः क्रियाः । उक्तकाले भवन्त्येता दोषो नापाढपुष्ययोः ॥ ८१ ॥ मासप्रयुक्तकार्येषु अस्तत्वं गुरुशुक्रयोः ।
न दोषकृत्तदा मासो रक्षको बलवानिति ॥ ८२ ॥ पुंसवने च सीमन्ते चौलोपनयने तथा ।
गर्भाधान प्रमोदे च नान्दीम गलमाचरेत् ॥ ८३ ॥
जो पुरुष निर्धन है वह नियत समय में बारबार इन क्रियाओंको न कर सकता हो तो गर्भाधान, प्रमोद, सीमन्त, और पुंसवन - इन सब क्रियाओंको एक साथ नववें महीने में करे । गर्भा धानको आदि लेकर अन्नप्राशन पर्यन्तकी कुल क्रियायें अपने अपने नियत समय में होती हैं । इनके लिये आषाढ़ और पूषका दोष नहीं गिना जाता । जिस समयमै जो क्रिया करनेकी है उस समय, यदि बृहस्पति और शुक्रका अस्त हो तो भी कोई दोष नहीं है । उस वक्त वही महीना बद
नोट-१ कुछ भुड़ी हुई नोंक, जैसी कि अधफूले फूलकी पांखुरीकी नोंक भीतरको कुछ ही रहती है। प्र
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