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त्रैवर्णिकाचार।
२५१ विछावे । बालकको स्नान कराकर वस्त्र आभूषण पहनावे । फिर अच्छे मुहूर्तमें उस कपड़ेपर बालकको पद्मासन बैठावे । पद्मासन बैठानेकी विधि यह है कि बालकका मुख पूर्व दिशाकी ओर करे, बायें पैरको नीचे और दाहिने पैरको ऊपर करे, तथा पैरोंके अपर उसके दोनों हाथ धरे । इस तरह बैठाकर उसकी आरती उतारे और विप्रगण आशीर्वाद दें। उस दिन सब सजनोंको प्रीतिपूर्वक भोजन करावे । " सम्पूज्य श्रीजिनभूमिकुमारान् पंच पूजयेत " ऐसा भी पाठ है, जिसका अर्थ होता है कि पांच कुमार बालब्रह्मचारी जिनोंकी पूजा करे ॥१३१-१३५॥
मंत्र:-ॐ हीं अहं असि आ उ सा बालकमुपवेशयामि स्वाहा । . इस मंत्रको बोलकर बालकको बैठावे ।
अन्नप्राशन-क्रिया। तथा च सप्तमे मासे शुभ: शुभवासरे। अन्नस्य माशनं कुर्यादालस्य वृद्धये पिता ।। १३६ ॥ जिनेन्द्रसदने पूजा महावैभवसंयुता।। आदौ कार्या ततो गेहे शुद्धानं क्रियते बुधैः ॥ १३७ ।। ततः माङमुखमासित्वा पिता माताऽथवा सुतम् । दक्षिणाभिमुखं कृत्वा वामोत्सङ्गे निवेशयेत् ॥ १३८ ॥ क्षीरानं शर्करायुक्तं घृताक्तं माशयेच्छिशुम् ।
दध्यन्नं च ततः सर्वोन्वान्धवानपि भोजयेत् ॥ १३९ ॥ बालकको पहले-पहल अन्न खिलानेको अन्नप्राशन कहते हैं। सातवें महीने शुभ नक्षत्र और शुभ दिनमें बालककी वृद्धिके लिए पिता इस विधिको करे। प्रथम भारी ठाठ-बाटके साथ जिनमंदिर में जिनदेवकी पूजा करे । बाद अपने घरमें शुद्ध भोजन तैयार करावे । इसके बाद माता अथवा पिता दक्षिण दिशाकी ओर मुखकर बैठे, और वालकका पूर्वदिशाकी ओर मुखकर उसे अपनी बाई गोदमें बैठाकर घी शक्कर मिला हुआ, खीर, दही और मिष्टान्न खिलावे । बाद सब बान्धर्वोको भोजन करावे ॥ १३६--१३९ ॥
मंत्र-ॐ नमोऽहते भगवते भुक्तिशक्तिमदायकाय बालकं भोजयामि पुष्टिस्तुष्टिचारोग्यं भवतु भवतु इवीं क्ष्वीं स्वाहा । यह मंत्र पदकर बालकको अन्न खिलावे ।
पादन्यासक्रिया (गमन-विधि ) अथास्य नवमे मासे गमनं कारयेत्पिता । गमनोचितनक्षत्रे सुवारे शुभयोगके ॥ १४० ॥ पूजां होमं जिनावासे पिता कुर्याच्च पूर्ववत् । पुत्रं संस्त्राप्य सशस्त्रैर्भूषयेद्भूषणैः परम् ॥ १४१ ।।