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त्रैवर्णिकाचार।
२५७ पूर्ववद्धोमपूजादि कार्यं कृत्वा जिनालये । पुत्रं संस्नाप्य सद्भपैरलंकृत्य विलेपनैः ।। १७१ ॥ विद्यालयं ततो गत्वा जयादिपञ्चदेवताः । सम्पूज्य प्रणमेद्भक्त्या निर्विघ्नग्रन्थसिद्धये ॥ १७२ ॥ वस्त्रैर्भूषैः फलद्रव्यैः सम्पूज्याध्यापकं गुरुम् ।
हस्तद्वयं च संयोज्य प्रणमेद्भक्तिपूर्वकम् ॥ १७३ ॥ ___ इस तरह ऊपर बताये हुए किसी एक मुहूर्तमें विद्या प्रारंभ करावे । उस दिन माता, गुरू और शास्त्र-सरस्वतीकी पूजा करे । पहलेकी तरह जिनालयमें जाकर होम, जिनपूजा आदि करे । बाद बालकको स्नान कराकर, वस्त्र आभूषण पहनाकर, ललाटमें तिलक लगाकर विद्यालय-स्कूलमें ले जावे । वहां जाकर निर्विन रीतिसे विद्या समाप्त होनेके लिए जमादि पांच देवतोंकी पूजा कर उन्हें भक्ति भावसे उस बालकसे नमस्कार करावे । बाद वस्त्र, आभूषण 'फल और रुपये वगैरहसे अध्यापककी पूजाकर दोनों हाथ जोड़ भक्तिपूर्वक बालक अध्यापक को नमस्कार करे ॥ १७०-१७३ ॥
प्राङ्मुखो गुरुरासीनः पश्चिमाभिमुखः शिशुः । कुर्यादक्षरसंस्कारं धर्मकामार्थसिद्धये ।। १७४ ॥ विशालफलकादौ तु निस्तुपाखण्डतण्डुलान् । उपाध्यायः प्रसार्याथ विलिखेदक्षराणि च ॥ १७५ ।। शिष्यहस्ताम्बुजद्वन्द्वधृतपुष्पाक्षतान् सितान् । क्षेपयित्वाऽक्षराभ्यणे तत्करेण विलेखयेत् ॥ १७६ ॥ हेमादिपीठके वापि प्रसार्य कुङ्कुमादिकम् । सुवर्णलेखनीकेन लिखेत्तवाक्षराणि वा ॥ १७७ ।। नमः सिद्धेभ्य इत्यादौ ततः स्वरादिकं लिखेत् ।
अकारादि हकारान्तं सर्वशास्त्रप्रकाशकम् ।। १७८ ॥ विद्या सिखानेवाला गुरु पूरबकी ओर मुखकर बैठे । बालकको पश्चिमकी ओर मुखकर बैठावे। बाद धर्म, अर्थ और कामकी सिदिके लिए अक्षर-संस्कार करे। वह इस तरह कि एक मोटी पट्टीपर छिलके-रहित अखंड चाँवलोंको बिछाकर उपाध्याय प्रथम आप खुद अक्षर लिखे। बाद उन अक्षरोके पास बालकके हाथसे सफेद फूल और अक्षतोंको क्षेपण करा कर उसके हाथको अपने हाथसे पकड. कर उससे अक्षर लिखवावे । अथवा सोना, चांदी आदिके बने हुए पाटेपर कुंकुम, केशर आदि बिछाकर सोनेकी लेखनीसे उसपर अक्षर लिखे और बालकसे लिखावे । अक्षर लिखते समय सबसे पहले 'नमः सिद्धेभ्यः' लिखे। इसके बाद अकारको आदि लेकर हकारपर्यंतके संपूर्ण शानोंको प्रकाश करनेवाले स्वर और व्यंजन लिखे और बालकसे लिखावे ॥ १७४-१७८ ॥
मंत्र-ॐ नमोऽहते नमः सर्वज्ञाय सर्वभाषाभाषितसकलपदाथोय बालकमक्षराभ्यास कारयामि द्वादशाङ्गश्रुतं भवतु भवतु ऐं श्रीं हीं क्लीं स्वाहा ।