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. . त्रैवर्णिकाचारं। अष्टोत्तरसहस्रेण नामभिर्यो विराजते । स देवोऽस्मै कुमाराय शुभं नाम प्रयच्छतु ॥ १२३ ॥ इति सम्पार्थ्य देवं तं त्रिवारं च द्विजैः सह । यदायाति स तन्नाम घोपयित्वा नमेज्जिनम् ॥ १२४ ॥ पूर्णार्प यक्षदेवानां दत्वा कर्णौ निशामुखे ।
संछेद्यान्दोलके रात्री वालं प्रीत्या निवेशयेत् ॥ १२५॥ लड़केका पिता किसी बर्तनमें छिलके-रहित चाँवलोंको इस तरकीबसे बिछावे कि बीचमें कोई छिद्र न रहे-कोई जगह खाली न रहे । उनमें उंगलीसे पहिले अपना नाम लिखे। फिर अपनेको जो इष्ट हो वही नाम उस लड़केका लिखे । दूसरे बर्तनमें दूध और घी मिलाकर उसमें लड़केके आभूषण (जेवर) धरे । फिर इसमें तथा पहलेके बर्तनमें गन्ध, पुष्प और कुश घरे ।
मस्तक, दोनों कान, कण्ठ, दोनों भुजाएं और छातीपर घृत, दूध और कुशका सेचन कर उस . बालकको दागीनोंसे सजावे। बाद " जो एक हजार आठ नाम कर विराजमान है वह देव इस बालकको शुभ नाम प्रदान करे ।" इस तरह ब्राह्मणोंके साथ साथ तीन बार उस देवकी प्रार्थना करे । बाद लड़केका जो नाम रखना हो उस नामकी जोरसे घोषणा कर जिनदेवको नमस्कार करे और यक्षोंको पूर्णा देवे | उसी दिन शामके समय बालकके दोनों कान छेदकर रातको पालने में उसे प्रीतिपूर्वक सुला दे ।। १२०-१२५ ॥
मंत्र-ॐ हीं श्रीं क्लीं अर्ह वालकस्य नामकरणं करोमि । अभिनन्दननाम्ना आयुरारोग्यश्वर्यवान् भव भव । अष्टोत्तरसहस्राभिधाना) भव भव झौं लौं असि आ उ सा स्वाहा।
यह मंत्र पढ़कर नामकर्म करे । " अभिनन्दननाम्ना " के आगे लड़केका जो नाम रखना हो उसे जोड़ दे।
मंत्र-ॐ हीं श्रीं अई बालकस्य हः कर्णनासावेधनं करोमि अ सि आ उ सा स्वाहा।
यह मंत्र पढ़कर बालकका कर्णवेध करे ।
मंत्र-ॐ हीं श्लौं झौं श्वी क्ष्वी आन्दोलं बालकमारोपयामि तस्य सर्वरक्षा भवतु सौ झौं स्वाहा। यह मंत्र पढ़कर बालकको मूलेपर सुलावे ।
बहिर्यान-क्रिया। गृहानिष्क्रमणं सूनोश्चतुर्थे मासि कारयेत् । जिनार्कदर्शनार्थं च तृतीये प्रथमेऽपि वा ॥ १२६ ॥ शुक्लपक्षे सुनक्षत्रे स्नातं भूषणभूषितम् । पुण्याहवचनैर्वालं सिञ्चयेच्च कुशोदकैः ॥ १२७ ॥