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सोमसेनभट्टारकविरचित-- सज्जनेषु परा प्रीतिः पुत्रे सुप्रीतिरुच्यते। .
मियोद्भवश्व देवेषूत्साहस्तु क्रियते महान् ।। ९२ ॥ पुत्र पैदा होनेके बाद, प्रोति, सुप्रीति और प्रियोद्भव क्रियाएं बड़े उत्साहके साथ करे। सजनोंमें प्रीति करना प्रीतिक्रिया है। पुत्रमें प्रीति करनेको सुप्रीतिक्रिया कहते हैं। और देवोंमें उत्साह फैलाना प्रियोद्भव-क्रिया है ॥ ९१-९२ ॥
पुत्रे जाते पिता तस्य कुर्यादाचमनं मुदा।। प्राणायामं विधायोचैराचमं पुनराचरेत् ॥ ९३ ।। पूजावस्तूनि चादाय मङ्गलं कलशं तथा । . महावाद्यस्य निर्घोपं व्रजेद्धमजिनालये ॥ ९४ ॥ ततः पारभ्य सद्विमान् जिनालये नियोजयेत् । प्रतिदिनं स पूजार्थ यावन्नालं प्रच्छेदयेत् ।। ९५ ॥ दानेन तर्पयेत्सर्वान् भट्टान् भिक्षुजनान् पिता। वस्त्रभूषणताम्बूलैः स्वजनात् सकलानपि ॥ ९६ ॥ मुखमालोक्य पुत्रस्य पात्रे क्षीराज्यशर्कराः । . संमिश्य पञ्चकृत्वस्तं पाशयेत्काञ्चनेन सः ॥ ९७ ॥ स्त्रीपुत्रयोश्च कर्मैवं कर्तव्यं द्रव्यमात्रकम् ।
ब्रह्मसूत्रे धृतं नालं तेनावेष्टय निकृन्तयेत् ।। ९८ ॥ पुत्रका जन्म होनेपर उसका पिता बड़े हर्षसे प्रथम आचमन करे। बाद प्राणायाम करके फिर आचमन करे। फिर पूजा-सामग्री और मंगल-कलश लेकर गाजेबाजेके साथ जिन-मंदिर जावे। उस दिनसे जबतक नालछेद क्रिया न हो तबतक प्रतिदिन पूजा करनेके लिए सदाचारी ब्राह्मणोंकी नियोजना करे, भाटों भिक्षुकों आदिको दान देकर सन्तुष्ट करे, और अपने सारे कुटुंबी जनोंको वस्त्र आभूषण और तांबूलसे संतुष्ट करे । पुत्रका मुख देखकर एक पात्रमें दूध घी और शक्कर मिलाकर सोनेको चिमची अथवा दूसरे किसी सोनेके पानसे पांच दफे उस बच्चे के मुंहमें डाले । यह विधि पुत्रीके लिए भी मंत्र आदिका उच्चारण न कर सिर्फ क्रियामात्ररूप की जाय। इसके बाद नालको ब्रह्मसूत्र (जनेऊ) में लपेटकर नालच्छेद करे ॥ ९३-९८ ॥
ततस्तन्नाभिनालं तु शुचिस्थाने निवेशयेत् । . .
रत्नमुक्ताफलद्रव्ययुक्तं भूमौ मुदा पिता ॥ ९९ ॥ पश्चात् पिता हर्षयुक्त होकर उस नालको रत्न और मोतीके साथ पवित्र भूमिमें गाड़े ॥ ९९ ॥
प्रसूतौ वनिताऽगारे चतुरङ्गुलमात्रकम् । त्यक्त्वा मृदं मृदा शुच्या. गोमयेन तु लेपयेत् ।। १०० ॥ पञ्चकल्कजलैरुष्णैः सा संस्नायात्सुतान्विता । तौ तृतीये तृतीयेऽन्हि शुचित्वमेवमाचरेताम् ॥ १०१ ॥