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सातवां अध्याय।
मङ्गलाचरण । नमः श्रीवर्द्धमानाय सर्वदोषापहारिणे ।
जीवाजीवादितत्त्वानां विश्वज्ञानं सुविनते ॥१॥ श्रीवर्धमानस्वामीको नमस्कार है, जिनने अपने क्षुधादि अठारह दोषोंको नष्ट कर दिए हैं, और जिनको जीव अजीव आदि सातों तत्वोंका परिपूर्ण ज्ञान है ॥ १ ॥
सकलवस्तुविकासदिवाकर, भुवि भवार्णवतारणनौसमम् ।
सुरनरप्रमुखैरुपसेवितं, सुजिनसेनमुनि प्रणमाम्यहम् ॥ २॥ जो सम्पूर्ण वस्तुओंके स्वरूपको प्रकाश करनेमें सूर्यके समान हैं, भूमंडलमें संसारी जीवोंको संसारसमुद्रसे पार करनेके लिए नौका-जहाजके समान हैं . और देवों तथा मनुष्यों द्वारा सेवनीय हैं-ऐसे श्रीजिनसेन मुनीश्वरको मैं नमस्कार करता हूं ॥ २ ॥
द्रव्य सम्पादन करनेकी विधि। धर्मकृत्यं समाराध्य सद्व्यं साधयेत्ततः ।
विना द्रव्यं कुतः पुण्यं पूजा दानं जपस्तपः ॥३॥ पूर्वोक्त अध्यायोंमें वर्णन किये अनुसार विधिपूर्वक धर्म-कार्योंका संपादन करता हुआ द्रव्य कमाबे; क्योंकि द्रव्यके बिना पुण्य, पूजा, दान, जप और तप नहीं बन सकते ॥ ३ ॥
त्रिवर्गसंसाधनमन्तरेण, पशोरिवायुर्विफलं नरस्य ।
तत्रापि धर्म प्रवरं वदन्ति, न तं विना यद्भवतोऽर्थकामौ ॥ ४॥.. धर्म, अर्थ और काम इन तीन वर्गोंकी साधना किये बिना मनुष्यका जन्म पशुकी तरह विफलं है। इन तीनों वर्गामें भी धर्म पुरुषार्थको बड़े बड़े दिव्यज्ञानी श्रेष्ठ बतलाते हैं। क्योंकि धर्मके बिना अर्थ पुरुषार्थ और काम पुरुपार्थ दोनों नहीं बन सकते ॥४॥
स्त्रियोंके कर्तव्य। सम्मार्जनं जलाकर्ष पेषणं कण्डनं तथा। - अग्निज्वालेति पञ्चैव कर्माणि गृहियोषिताम् ॥ ५॥
धरकी सफाई रखना, जलाशयसे जल भरकर लाना, चक्की पीसना, ऊखलमें धान्यादि कुट कर साफ करना, चूल्हा जला कर भोजन बनाना-थे पांच गृहस्थ स्त्रियोंके कर्तव्य हैं ॥ ५ ॥