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त्रुटितं पाटितं जीर्ण तुच्छं सूक्ष्मं सरन्ध्रकम् । न ग्राह्यं गालनं स्त्रीभिर्जलजन्तुविशुद्धये ॥ १३ ॥
जो कटा-फटा हो, पुराना हो, छोटा हो, बारीक हो, छेदवाला हो ऐसा कपड़ा स्त्रियोंको जल छाननेके लिए नहीं रखना चाहिए ॥ १३ ॥
तेन वस्त्रेण कुम्भास्यं संच्छाद्य शोधयेज्जलम् ।
शनैः शनैश्च धाराभिर्यथा नोघयेद्धम् ॥ १४ ॥
ऐसे योग्य छन्नेसे घड़ेके मुखको ढांक कर धीरे धीरे धार बांध कर जल छाने, ताकि जल उछलकर घड़ेके बाहर न फैले ॥ १४ ॥
शेषं जलं तु तत्रैव तीर्थे निक्षेपयेत्पुनः ।
तीर्थादागत्य गेहे तु पुनः संशोधयेज्जलम् ।। १५ ।।
बचे हुए जलको अर्थात् जीवानीको वहीं जलाशय में छोड़ दे । तथा जलाशयसे घर आकर फिर जल छाने ॥ १५ ॥
घटीद्वये गते चापि पुनरेवं विशोधयेत् ।
प्रातःकाले तु संशोध्य शेषं पूर्वजले क्षिपेत् ॥ १६ ॥
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मुहूर्त गलितं तोयं प्रासुकं प्रहरद्वयम् । उष्णोदकमहोरात्र मगालितमिवोच्यते ॥ १७ ॥
इसी तरह प्रत्येक दो घड़ीके बाद जल छान कर काममें लेवे। सुबहके समय जल छानकर जीवानी उसी जलाशयमें डाल आवे ।
इस तरह छाना हुआ जल दो घड़ी तक जीव-जन्तु रहित याने प्रासुक रहता है । इलायची, लौंग वगैरह डालकर प्रासुक किया हुआ जल दो पहरतक और गर्म किया हुआ जल एक दिनराततक जीवजन्तु - रहित रहता है । इसके अलावा जो जल है वह बिना छने जलके बराबर होता है ॥ १६-१७ ॥
वासयेत्पाटलीपुष्पैर्मूलैरौशीरकैस्तथा । एलाकर्पूरकाभ्यां तु चन्दनादिसुवस्तुना ॥ १८ ॥
पाटली (पाढल ) के फूल, उशीरक मूल ( खस ), इलायची, कपूर तथा चन्दन आदि उत्तम उत्तम वस्तुओं से जलको सुगन्धित करे ॥ १८ ॥
एकविन्द्रद्भवा जीवाः पारावतसमा यदि ।
भूत्वा चरन्ति चेज्जम्बूद्वीपोऽपि पूर्यते च तैः ॥ १९ ॥
जलकी एक बूंद इतने जीव हैं कि यदि वे कबूतरके बराबर होकर उड़ें तो उनसे यह जम्बूद्वीप लबालब भर जाय ॥ १९ ॥
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