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सोमसेनमहारकाविरचित
तेजस्वी शान्तरूपश्च त्यागी भोगी दयापरः । . .
बलिष्ठश्च रणे योद्धा प्रोक्तो राजा स पण्डितः ॥६६॥ राजा तेजस्वी, शान्त, उदार, सम्पत्तिका उपभोग करनेवाला, दयालु, बलवान, योद्धा और विद्वान होना चाहिए ॥६६॥ .. ..
तिम्रो मंत्रप्रभूत्साहशक्तयश्च प्रकीर्तिताः।
वामनोदैवसिद्धयन्ता नृपे तिस्रश्च सिद्धयः ।। ६७ ॥ मंत्र-शक्ति, प्रभु-शक्ति और उत्साह-शक्ति-ये तीन शक्तियां हैं। वचन-सिद्धि, मन-सिद्धि और देव-सिद्धि-ये तीन सिद्धियां हैं ॥ ६७ ॥
पागुण्यं नृपतौ प्रोक्तं राज्यरक्षणहेतवे ।
सन्धिविग्रहयानासनाश्रयद्वैधभावनम् ॥ ६८ ॥ '. राज्यकी रक्षाके लिए राजामें सन्धि, विग्रह, मान, आसन, आश्रय और वैधी भाव-ये छह गुण कहे गए हैं ॥ ६८॥
समतादर्शनं स्वस्य ददेदानमार प्रति ।
भेदः शत्रोश्च सेनाया दण्डः शत्रुनिपातनम् ॥ ६९ ॥ समता-सबको समान देखना, दान-अपने शत्रुको नजराना देना, भेद-शत्रुकी सेनामें फूट मचा देना, और दण्ड-शत्रुका विनाश करना-ये चार राज्यकी रक्षाके उपाय हैं ॥ ६९॥ .
सहायाः साधनोपायो देशकालवलावले ।
विपत्तेश्च प्रतीकारः पञ्चधा मन्त्र इष्यते ॥ ७० ॥ अपने सहायक कौन कौन हैं, अपने पास क्या क्या साधन हैं, इस समय कौनस उपाय करना चाहिए, देश-काल अपने अनुकूल है या प्रतिकूल है, तथा इस आई हुई आपत्तिक प्रतीकार कैसे हो सकता है--इस तरहके विचार करनेको पांच प्रकारके मंत्र कहते हैं ॥७०
अष्टादशाक्षौहिणीनां स्वामी मुकुटबन्धकः।
क्षोणीलक्ष्म ततो वक्ष्ये जिनागमानुसारतः ॥ ७१ ॥ जो अठारह अक्षौहिणी सेनाका स्वामी हो उसे मुकुटबद्ध राजा कहते हैं । अक्षौहिणी सेनाका लक्षण जिनागमके अनुसार आगे कहते हैं ॥ ७१ ॥ . .
पत्तिः सेना च सेनास्यं गुल्मो वाहिनिपृतने ।
चमूरनीकिनी चेति चाष्टधा शृणु तद्विधिम् ॥ ७२ ॥ पत्ति, सेना, सेनामुख, गुल्म, वाहिनी, पृतना, चमू और अनीकिनी ये सेनाके आठ भेद हैं। . इनके लक्षण आगे कहते हैं ॥७२॥