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सोमसेनभट्टारकविरचितअलोमशां च सद्रुचामनार्दी सुमनोहराम् ।
योनि स्पृष्ट्वा जपेन्मन्त्रं पवित्रं पुत्रदायकम् ॥ ४२ ॥ स्त्रियां मुखमें पान खा कर, ललाट (कपाल) पर केशर आदिका तिलक लगा कर और अपने पतिको आनन्दित कर संभोग करे । जिस स्त्रीने पान न खाया हो, जो नम हो, मुंहसे बकझक करती हो, रोती हो, दुर्मुखा हो-अप्रिय वचन बोलनेवाली हो और भूखी हो, ऐसी स्त्रीके साथ पुरुष संयोग न करे । स्त्रीसंभोगकी इच्छा करनेवाला पुरुष भी भूखा न हो । वह भी भोजन करक शय्यापर आरूढ़ होवे | वाद परमात्माका स्मरण कर ब्यालीसवें श्लोकमें लिखी हुई क्रियाओंको करता हुआ नीचे लिखा हुआ पुत्रदायक मंत्रका जाप करे ॥ ३९-४२ ॥
मंत्र-ॐ हाँ क्लीं ब्लू योनिस्थदेवते मम सत्पुत्रं जनयस्व अ सि आ उसा स्वाहा।
इति मंत्रेण गोमयगोमूत्रक्षीरदधिसर्पिःकुशोदकोनि सम्मक्षाल्य श्रीगन्धकुंकुमकस्तूरिकाद्यनुलेपनं कुर्यात् ।
अर्थात् यह मंत्र पढ़कर गोबर, गोमूत्र, दूध, दही, घी, डाभ, और जलसे जननेंद्रियका प्रक्षालन कर उसपर गंध, केशर, कस्तूरी आदि सुगन्धित द्रव्योंका लेप करे।
योनि पश्यन् जपेन्मन्त्रानहंदादिसमुद्भवान् ।
मादृशस्तु भवेत्पुत्र इति मत्वा स्मरेज्जिनम् ॥ ४३ ॥ मेरे सरीखा हो मेरे यहां पुत्र होवे ऐसा मानकर फिर नीचे लिखे अहंदादि मंत्रोंको पढ़े ॥ ४३ ॥
मंत्र-ॐ हाँ अहंदभ्यो नमः । ॐ ही सिद्धेभ्यो नमः। ॐ हूँ मरिभ्यो नमः । ॐ हौँ पाठकेभ्यो नमः । ॐ हा सर्वसाधुभ्यो नमः॥
फिर नीचे लिखा मंत्र पढ़कर स्त्रीका आलिंगन करे ॥ मंत्र-ॐ हाँ श्रीजिनप्रसादात् मम सत्पुत्रो भवतु स्वाहा।
ओष्ठावाकर्षयेदोष्टैरन्योन्यमवलोकयेत् ।। स्तनौ धृत्वा तु पाणिभ्यामन्योन्यं चुम्बयेन्मुखम् ॥ ४४ ॥ वलं देहीति मन्त्रेण योन्यां शिश्नं प्रवेशयेत् ।
योनेस्तु किंचिदधिकं भवेल्लिङ्ग बलान्वितम् ॥ ४५ ॥ इन दोनों श्लोकोंमें बतलाई गई सामान्य विधिके अनुसार स्त्रीमें कामकी इच्छा उत्पन्न करे । मंत्र-ॐ ही शरीरस्थायिनो देवता मां बलं ददतु स्वाहा ।
इस मंत्रको पढ़कर संभोग करना चाहिए । नोट-१. अश्लीलता और अशिष्टाचारका दोष आनेके सबब ४२ वें श्लोकमें कही गई
क्रियाओंका भाषानुवाद नहीं किया गया है । इसी प्रकार ४४ वें और ४५ वें श्लोकका अर्थ भी नहीं लिखा गया है।
प्रकाशका