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सोमसेनमट्टारकविरचितकर्णेजपान् खलाँचोरान् परस्त्रीलम्पटान्मदान् ।
देशानिर्वासयेद्राजा हिंसकान्मद्यपायिनः ॥ १०० ।। चुगलखोरों, दुष्टों, चोरों, परस्त्री लंपटियों, मदोन्मत्तों, हिंसकों और शराब पीने वालोंको राजा देशसे निकाल वाहिर करे ॥ १० ॥
__ स्वदेशादागतं वित्तं यथापात्रं समर्पयेत् । - खञ्ज भट्ट नट काणमन्धादीन्प्रतिपालयेत् ॥ १०१॥
अपने देशसे वसूल हुए धनको योग्य पात्रोंको देवे तथा उससे लंगड़े, भाट, नट, काने, अंधे आदि लोगोंका पालन-पोषण करे ॥ १०१॥
इत्यादि देशनं कृत्वा सन्ध्यायाः समये ततः ।
गच्छेजिनालयं राजा सन्ध्यादिक क्रियां भजेत् ॥ १०२ ।। उपर्युक्त कार्योंके बारेमें अपने नौकरादिकांको आज्ञा करके राजा सन्ध्याके समय जिनमंदिरको जावे और वहांपर सन्ध्यावंदन आदि क्रियाएं करे । इस तरह क्षत्रियांका आचार कहा ॥ १०२ ॥
वैश्यस्य सक्रियां मोचे पुराणस्यानुसारतः।
मपी कृषिः पाशुपाल्यं वाणिज्यं वैश्यकर्मणि ॥ १०३ ॥ अब पुराणके अनुसार वैश्योंका आचार-व्यवहार कहता हूँ। वैश्यके कर्ममें मपी (लिखना-पढ़ना), कृषि ( खेती ), पशुपालन और वाणिज्य (व्यापार), ये चार कार्य मुख्य हैं ॥ १०३ ॥
राजसेवां समाश्रित्य कुर्याद्देशस्य लेखनम् ।
आयव्ययं कुलाचारं दत्तं भुक्तं नृपेण यत् ।। १०४ ॥ राजकी नौकरी पाकर सारे देशके आयव्ययका हिसाव लिखे कि राज्यमें कितनी आमदनी है, कितना खर्च है; राजाके कुलका आचरण कैसा है, राजाने किसको क्या दिया है, उसने स्वयं किस चीजका उपभोग किया है ॥ १०४ ॥
व्ययं तु सदने स्वस्य वाऽऽदाय वा कतिपमम् ।
द्रविणं कस्य किं दत्तं गृहीतं किं च कस्य वा ।। १०५ ॥ इसी तरह वैश्य अपने घरका हिसाब-किताब लिखे कि आज अपने घरमें क्या खर्च हुआ है, कितनी आमदनी हुई है, किसको कितने रुपये दिए हैं और किसके कितने २० आए हैं ॥ १०५ ॥
कति धान्यं कति द्रव्यं सुवर्ण वाऽथ गोधनम् ।
भुक्तिभाण्डं च संलेख्यं यतो न संशयो भवेत् ॥ १०६ ।। • अपने घरमें कितना धान्य, कितना द्रव्य, कितना सोना, कितनी गाएँ-भै और कितने भोजनके बर्तन हैं, ये सब लिखे ताकि कोई तरहका सन्देह न रहे ॥ १०६ ।।