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सोमसेनभट्टारकविरचित
तस्माद्यत्नः परः कार्यों धर्माय जलशोधने ।.
नूतनं सुदृढं वस्त्रं ग्राह्यं श्रावकधर्मिणा ॥ २० ॥ इसलिए श्रावकोंको जल छाननेमें धर्मके निमित्त पूरा पूरा यत्न करना चाहिए तथा नया मजबूत कपड़ा जल छाननेको रखना चाहिए ॥ २० ॥ इस ग्रन्थके प्रायः सभी श्लोक संग्रह किये हुए हैं, इसलिए पुनरुक्तिपर लक्ष्य नहीं देना चाहिए।
पट्टकूलमतिसूक्ष्मं बहुमूल्यं दृढं धनम् । .
परिधत्ते स्वयं वस्त्रं जलार्थे तु दरिद्रता ।। २१ ॥ जो बहुत बढ़िया हो, अधिक मूल्यका हो, बहुत बारीक हो, बहुत ही मोटा हो जिससे पानी छनना ही मुश्किल हो जाय-ऐसे कपड़ेको जल छाननेके लिए रखनेसे दरिद्रता बढ़ती है ॥२१॥
गोधूमादिसुधान्यानि संशोध्य शुचिभाजने ।
नूतनानि पवित्राणि पेपयेज्जीवयत्नतः ।। २२ ॥ अच्छे नए गेहूं आदि धान्यको पवित्र बर्तन में बीन कर चक्कीमें सावधानीसे पीसे, जिससे कि जीवोंको बाधा न पहुंचे ॥ २२ ॥
घुणितं जीणितं धान्यं वर्णस्वादविपर्ययम् ।
पेषयेत्कुट्टयेनैव भिक्षुभ्योऽपि न दीयते ॥ २३ ॥ जो घुना हुआ हो, पुराना हो, जिसका रंग और स्वाद बदल गया हो-ऐसे धान्यको नहीं पीसे, न ऊखलमें कूटे और न भिक्षुकोंको देवे ॥ २३ ॥
घुणितं कीटसंयुक्तं धर्मे मार्गेऽथवा जले।
धान्यं प्रसार्यते नैव जीवघातो भवेद्यतः ॥ २४ ॥ जो घुन गया हो, जिसमें कीड़े पड़ गए हों-ऐसे धान्यको न तो धूपमें फैलावे, न रास्ते) फैलावे, और न पानीसे धोवे । क्योंकि ऐसा करनेसे जीवोंकी हिंसा होती है ॥ २४ ॥
बहुदिनानि रक्ष्यन्ते न च धान्यानि संग्रहे ।
उत्पत्तिस्त्रसजीवानां यतः सञ्जायते भुवि ॥ २५ ॥ अधिक दिन पर्यन्त धान्यका संग्रह न रक्खे । क्योंकि अधिक दिन तक रखनेसे उसमें सजीव पड़ जाते हैं ॥ २५ ॥
तण्डुलेषु च चूर्णेषु द्विदलेषु च शीघ्रतः ।
उत्पत्तिस्त्रसजीवानां तस्माद्वेगाव्ययो मतः ॥२६॥ चावलोंमें, आटेमें और चने आदिकी दालमें बहुत जल्दी त्रस जीव उत्पन्न हो जाते हैं । इसलिये इनको अधिक दिन तक न रखकर जल्दी खर्च कर देना चाहिए ॥ २६ ॥ .