________________
त्रैवर्णिकाचार |
पंचांग और पइवर्ध नमस्कार |
मस्तकं जानुयुग्मं च पञ्चाङ्गानि करौ नतौ । अत्र प्रोक्तानि पश्वर्द्ध शयनं पशुवन्मतम् ॥ ६५ ॥
मस्तक, दोनों घुटने और दोनों हाथ इस तरह ये पांच अंग नमस्कारमें कहे गये हैं अर्थात् इन पांचों अंगों को जमीनपर टेककर नमस्कार करना सो पंचांग नमस्कार है । और पशुकी तरह सोनेको पइवर्ध नमस्कार कहते है ॥६५॥
भुवं सम्मार्ज्जु वस्त्रेण साष्टांग नमनं भवेत् ।
पदद्वन्द्वं समं स्थित्वा दृष्टचा पश्येज्जिनेश्वरम् ॥ ६६ ॥
कपड़े से जमीनका मार्जन कर साष्टांग नमस्कार करे । इस तरह नमस्कार कर लेनेपर दोनों पैरोंको बराबर कर खड़ा रह कर आखोंसे जिनेश्वरको देखे । इसके बाद - ॥ ६६ ॥
संयोज्य करयुग्मं तु ललाटे वाऽथ वक्षसि ।
न्यस्य क्षणं नमेत्किचिद्भूत्वा प्रदक्षिणी पुनः ॥ ६७ ॥
१६९
दोनों हाथोंको जोड़ कर ललाटपर अथवा वक्षस्थलपर रख कर थोड़ासा नीचा झुक कर नमस्कार करे और प्रदक्षिणा देकर पुनः नमस्कार करे ॥ ६७ ॥
अष्टांग नमस्कार विधि |
वामपादं पुरः कृत्वा भूमौ संस्थाप्य हस्तकौ ।
पादौ प्रसार्य पश्चात् द्वौ शयेताधोमुखं शनैः ॥ ६८ ॥ सम्प्रसार्य करद्वन्द्वं कपालं स्पर्शयेद्ध्रुवम् । कपोलं सर्वदेहं च वामदक्षिणपार्श्वगम् ॥ ६९ ॥
पुनरुत्थाय कार्य त्रिवारं मुखे स्तुतिं पठन् । समस्थाने समाविश्य कुर्यात्सामायिकं ततः ॥ ७० ॥
!
प्रथम बायें पैर को आगे कर दोनों हाथोंको जमीनपर टेक दे पश्चात् दोनों पैरोंको पसारकर धीरेसे नीचा मुख कर सोवे । इसके बाद दोनों हाथोंको पसार कर मस्तकसे भूमिका स्पर्शन करे । इसके बाद दोनों कपोलों तथा बांये दाहिने पसवाड़ोसे भूमिका स्पर्श करे । पश्चात् खड़ा होकर फिर नमस्कार करे फिर खड़ा होवे और फिर नमस्कार करे इस तरह तीन वार नमस्कार कर खड़ा होकर जिन भगवानकी स्तुति पढ़े । इसके बाद बराबर जगहपर बैठकर सामायिक करे ||६८||६ ९ ॥७०॥
२२