________________
१७२
सोमसेनभट्टारका विरचित
wwwwwwWWW.HAAAAAA
कल्पद्रुम पूजाकी लक्षण ।
किमिच्छकेन दानेन जगदाशाः प्रपूर्य यः । चक्रिभिः क्रियते सोऽद्यज्ञः कल्पद्रुमो मतः ॥ ७९ ॥
आप क्या चाहते हैं इस प्रकार प्रश्न पूर्वक संसार भरके मनुष्योंकी आशा पूर्ण कर चक्रवर्ती राजाओं के द्वारा जो पूजा की जाती है उसे कल्पद्रुम यज्ञ कहते हैं ॥ ७९ ॥
बलिस्नपननाट्यादि नित्यं नैमित्तिकं च यत् ।
भक्ताः कुर्वन्ति तेष्वेव तद्यथास्वं विकल्पयेत् ॥ ८० ॥
भक्तजन जो नित्य करने योग्य और पर्व दिनों में करने योग्य ऐसे बलि (दाल, भात, रोटी आदि) चढ़ाना अभिषेक करना, नृत्य करना, गाना, बजाना, प्रतिष्ठा, रथयात्रा आदि करते हैं, उन सबका समावेश यथा योग्य इन नित्यमहादिकोंमेंही करना चाहिए । भावार्थ- परमात्माका अभिषेक करना उनके सामने नाचना गाना बजाना रथयात्रा करना गिरनार सम्मेद शिखर आदि यात्रा करना इत्यादिकोंका नित्यमह, वगैरह जो पूजाके भेद हैं उन्ही में शुमार है ॥८०॥
हरएक जल-गन्ध-आदि पूजाका फल | वार्धारा रजसः शमाय पदयोः सम्यक्प्रयुक्ताऽर्हतः सगन्धस्तनुसौरभाय विभवाच्छेदाय सन्त्यक्षताः । यष्टुः सग्दिविजस्रजे चरुरुमास्वाम्याय दीपस्त्विये धूपो विश्वदृगुत्सवाय फलमिष्टार्थाय चार्घाय सः ॥ ८१ ॥
शास्त्रोक्त विधिके अनुसार श्रीजिनेन्द्र देवके चरणोंमें अर्पण की हुई जल धारा ज्ञानावरणादि पापकर्मीको शान्त करती है । पवित्र गन्ध विलेपन शरीरमें सुगन्धि देता है, अक्षत चढ़ानेसे उसकी अणिमा महिमा सम्पत्तिका कभी नाश नहीं होता है, पुष्पमाला चढ़ानेसे स्वर्गमें कल्पवृक्षों की मालाएं प्राप्त होती हैं। नैवेद्य चढ़ानेसे अनन्त लक्ष्मीका अधिपति बनता है, दीप चढ़ानेसे कान्ति बढ़ती है, धूप चढ़ानेसे परम सौभाग्य प्राप्त होता है, फल चढ़ानेसे मनचाहे फलोंकी प्राप्ति होती है और अर्ध्य पुष्पांजलि क्षेपण करनेसे विशिष्ट सत्कारकी प्राप्ति होती है ॥ ८१ ॥
पूजाक्रमः ।
भक्त्या स्तुत्वा पुनर्नत्वा जिनेशं क्षेत्रपालकम् | पद्माद्याः शासनाधिष्ठा देवता मानयेत्क्रमात् ।। ८२ ।।
पूजा कर चुकने के बाद भक्तिभावसे जिनदेवकी स्तुति कर पुन: उन्हें नमस्कार कर क्रमसे