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. त्रैवर्णिकाचार।..
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मांस-त्याग-व्रतके दोष। चर्मस्थमम्भः स्नेहश्च हिंग्वसंहतचर्म च ।
सर्वं च भोज्यव्याप्यन्नं दोपः स्यादामिषवते ॥ २०७ ।। चमड़ेके वर्तनमें रक्खा हुआ जल, घी, तेल आदि, चमड़ेसे ढकी हुई या चमड़ेमें बँधी हुई हींग, तथा जिनका स्वाद बिगड़ गया हो ऐसे दाल भात घी आदि समस्त पदार्थोंका खाना मांस-त्यागबतके अतीचार हैं ॥२०७॥
· मधु-त्याग-व्रतके अतीचार। प्रायः पुष्पाणि नाश्नीयान्मधुव्रतविशुद्धये ।
वस्त्यादिष्वपि मध्वादिप्रयोगं नाहेति व्रती ॥ २०८ ॥ शहदके त्यागी पुरुषोंको अपने मधु-त्याग-व्रतकी निर्मलताके लिए प्रायः सभी जातिके फूल न खाने चाहिए; तथा वस्तिकर्म, पिण्डदान, नेत्रांजन आदिमें भी मधु, मांस, मद्यका उपयोग न करना जाहिए । भावार्थ-श्लोकमें प्रायः पद पड़ा हुआ है उससे मालूम पड़ता है कि जिन पुप्पोंको शोध सकते हैं ऐसे महुआ, भिलामा आदिके तथा नागकेसर आदिके सूके फूलोंके खानेका विलकुल निषेध नहीं है ।। २०७॥
पंच उदम्बर-त्याग ब्रतके अतीचार। . सर्व फलमविज्ञातं वार्ताकाद्यविदारितम् ।
तद्वद्वलादिसिम्बीश्च खादेन्नोदुम्बरव्रती ॥ २०९ ॥ . पंच उदम्बर फलोंके त्यागी गृहस्थोंको सभी जातिके अजान फल, ककड़ी, बेर, सुपारी आदि फल और मटर आदिकी फलियोंको विदारेबिना-उनका मध्यभाग शोधेबिना न खाना चाहिए ॥२०९॥
__इन ऊपरके श्लोकोंमें अष्ट मूलगुणोंके अतीचार बताए गए हैं । उनका संक्षेप भावार्थ मात्र यहां दिया गया है। यदि विशेष देखनेकी आवश्यकता हो तो सागारधर्मामृतकी संस्कृत टीका और उसकी भाषा टीकासें देखना चाहिए
अन्य त्याज्य पदार्थ। अनन्तकायाः सर्वेऽपि सदा हेया दयापरैः। ...
यद्येकमपि तं हन्तुं प्रवृत्तो हन्त्यनन्तकान् ॥ २१०॥. . . ये ऊपर बताए गए सभी पदार्थ तथा इसी तरहके और भी पदार्थ अनन्तकाय हैं। इनमें अनन्तानन्त जीव हर समय निवास करते हैं । अतः दयालु पुरुषोंको इन अनन्तकायोंका यावज्