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सोमसेनभट्टारकविरचित
यदि किसीका उच्चाटन करना हो तो इस कर्ममें काले रंगका यत्रं बनावै दिनके पिछले भागमें वायव्य दिशाकी ओर मुखकर कर्कुटासन बैठे पल्लवमुद्रा जोड़े और नील जाप्य से “ॐ ह्रीँ ह्रीँ” इत्यादि मंत्र का जाप करै इसीतर भूतादिका उच्चाटन करै । यह उच्चाटन कर्म है || ८२ ॥
विद्वेषकर्म ।
अथ विद्वेषकर्मणि कृष्णवर्णैर्यन्त्रोद्धारः । मध्यान्हे अग्निमुखः । कुर्कुटासनं पलवमुद्रा कृष्णजाप्यैर्जपः ॥ ॐ हाँ यहीँ हूँ हौं हा असि आ उ सा अनयोर्यज्ञदत्तदेवदत्तनामधेययोः परस्परमतीव विद्वेषं कुरु कुरु हूँ ॥ एवं स्त्रीपुरुषयोर्वा ॥ इति विद्वेषणम् ॥ ८३ ॥
विद्वेष कर्ममें काले रंगसे यंत्रो द्वार करै । मध्याह्नके समय आग्नेय दिशाकी ओर मुख कर कुकुटासनसे बैठे पल्लव मुद्रा करै, कालेजाप्यसे “ ॐ ह्राँ ” इत्यादि मंत्रका जाप करे । यदि स्त्रीपुरुष भी विद्वेष कराना हो तो इसी प्रकार करै ॥ ८३ ॥
अभिचारकर्म ।
अभिचारकर्मणि सर्पविषमिश्रैरुन्मत्तरसमित्रैः अपराण्हे ईशानदिङ्मुखः कृष्णवस्त्रो भद्रासनो वज्रमुद्राखदिरमण्यादिकृताक्षमालः । ॐ हाँ हाँ हूं हीँ ह अ सिआ उसा अस्य एतन्नामधेयस्य तीव्रज्वरं कुरु कुरु घे घे । इत्युच्चारयेत् । शूलशिरोरोगाणामप्येवं कर्तव्यम् । उच्चाटनादिकर्माणि धर्माधारभूतानां राजादिनामभिलपितानि चेत्तदा विधेयानि ॥ ८४ ॥
यदि किसीको कोई तरहका रोग उत्पन्न करना हो तो इस मंत्रका उपयोग करै । साँपके जहर से अथवा किसी मादक द्रव्यसे मिश्रित काले रंगसे यंत्र खेचै दोपहर के बाद ईशान दिशा की तरफ मुख कर काले कपड़े पहन भद्रासन बैठे, वज्रमुद्रा बनावे खदिरमणिकी जपमाला बनवावे, और " ॐ ह्रां ह्रीँ " इत्यादि मंत्रका उच्चारण करै । शूर शिरका रोग आदि भी इस मंत्र का प्रयोग करै । उच्चाटन आदि कर्म धर्मात्मा राजा आदिको अभिलषित हो तो करै ॥ ८४ ॥ .
होम विधि |
इत्याराधनाविधिं समाप्य होमशालायामग्निहोमं विदध्यात् ॥ तद्यथा - - ॐ हीँ क्ष्व भूः स्वाहा । पुष्पाञ्जलिः ॥ १ ॥
इस तरह इस पूजाके विधानको पूर्ण कर होम शाला में जाकर अग्नि होम करै । इसका विधान इस प्रकार है ।